उपसर्ग - संस्कृत व्याकरण | upsarg in sanskrit

 जब हम संस्कृत व्याकरण की बात करते हैं, और उपसर्ग का खयाल आता है | तो मन में सबसे पहला प्रश्न यह उठता है कि आखिर उपसर्ग क्या है ? 

हमने कई जगह उपसर्ग के बारे में सुना होता है, की यह किसी भी शब्द के आगे लगकर या शब्दांश के आगे लगकर उसके अर्थ में परिवर्तन कर देता है | 

परंतु संस्कृत भाषा थोड़ी जटिल होने के कारण उपसर्ग की परिभाषा यहाँ थोड़ी अलग हो जाती  है|इसलिए हम आपको संस्कृत में उपसर्ग किसे कहते हैं बताएंगे एवं इसके लिए हमें उसकी परिभाषा भी  संस्कृत में जाननी आवश्यक है |  

ये शब्दाश जो किसी मूल शब्द के पूर्व में लगकर गये शब्द का निर्माण करते हैं अर्थात् नये अर्थ का बोध कराते हैं उन्हें उपसर्ग कहते हैं 

ये शब्दांश होने के कारण वैसे इनका स्वतन्त्ररूप से अपना कोई महत्व नहीं होता किन्तु शब्द के पूर्व संश्लिष्ट अवस्था में लगकर उस शब्द विशेष के अर्थ में परिवर्तन ला देते है जैसे हार एक शब्द है. 

इसके साथ शब्दांश प्रयुक्त होने पर कई नये शब्द बनते है यथा आहार (भोजन) उपहार भेंट) प्रहार (चोट) बिहार (भ्रमण) परिहार

अपनी अंग्रेजी भाषा में भी उपसर्ग होते हैं जो कि संस्कृत जितना जटिल नहीं होता, परन्तु संस्कृत में सबसे खास बात यह है की यहाँ उपसर्गों की संख्या सिमित है और आसान भी | 

तो चलिए बात को ज्यादा भयावह न बनाते हुए जानते हैं आखिर संस्कृत में उपसर्ग क्या है, कितने है, और इसकी परिभाषा संस्कृत में क्या है? 

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संस्कृत में उपसर्ग की परिभाषा

उपसर्गेण धात्वर्थः बलादन्यः प्रतीयते।
प्रहाराहारसंहारविहारपरिहारवत्।।||

(अर्थात उपसर्ग की शक्ति के प्रयोग से धातुओं का अर्थ बदल जाता है।)
यहाँ धातु का अर्थ कोई भी सार्थक शब्द या शब्दांश है | यही संक्षित में संस्कृत व्याकरण में उपसर्ग की परिभाषा है | 

कियाओं और कृदन्त प्रत्ययमुक्त शब्दों के प्रारम्भ में उपसगों का प्रयोग किया जाता है | इससे भाषा में अर्थ चमत्कार आ जाता है यानी वह अपना वास्तविक अर्थ छोड़  नए अर्थ को धारण कर लेता है। 
एक ही शब्द में विभिन्न उपसगों का प्रयोग करके अनेक है अर्थ प्राप्त किये जा सकते हैं। अर्थ नहीं बदलने पर भी चमत्कार आ जाता है। कभी-कभी एक ही क्रिया या शब्द से एक साथ दो या तीन उपसर्ग का प्रयोग होता है।


 संस्कृत में उपसर्ग का प्रयोग 

संस्कृत भाषा में उपसर्ग का प्रयोग इस पर लागू धातुओं के प्रभाव की वजह से होता है, और उपसर्ग का धातु पर प्रभाव निम्न परिभाषा के तौर पर होता है : 

" धात्वर्थं बाधते कश्चित् कश्चित् तम अनुवर्तते।
विशिनष्टि तमेव अर्थम उपसर्ग गतिस्त्रिधा।। "

अर्थात धातुओं पर उपसर्ग का प्रभाव कहीं धातुओं के मुख्य अर्थ को बाधित कर उससे बिलकुल नवीनतम अर्थ देता है | उदाहरणतः  -

धातु - भू  ( भवति - होता है )
  • अनुभवति = अनुभव करता है
  • अभिभवति = तिरस्कार करता है 
  • उद भवति  = उत्पन्न  होता है
  •  परि भवति = हराता है 

साथ ही परिभाषा के अनुसार कही उपसर्ग धातुओं के मूल रूप का ही अनुवर्तन करता है | जैसे की -

धातु - नी  ( नयति - ले जाता है )
  • अनुनयति = खुशामद करता है; प्रार्थना करता है । 
  • आनयति =  लाता है 
  • विनयति = झुकता हैं 
  • विनयते   = क्रोध शान्त करता है । 
  • अभिनयति = अभिनय करता है । 
  • परिणयति = शादी करता है । 
  • निर्णयति = निर्णय करता है । 
  • उपनयति =  यज्ञोपवीत देता है।

इतना ही नहीं परिभाषा में आगे की बात करे तो उपसर्ग धातुओं में  कही कहीं विशेषण रूप में उसी धात्वर्थ को और भी विशिष्ट बना देता है | जैसे की - 

धातु - कम्प ( कम्पते - थड़थड़ाता है )
  • प्रकम्पते = प्रकृष्ट रूप से काँपता है।
  • आकम्पते = पूरी तरह से काँपता है।
  • वि कम्पते = विशेष रूप से काँपता है।

संस्कृत में उपसर्ग की संख्या 

जैसा की मैंने आपको ऊपर बताया की संस्कृत में उपसर्ग की संख्या सिमित है , तो यह जानना जरूरी हो जाता है की आखिर वास्तविक में संस्कृत में उपसर्ग कितने है ?
दरअसल संस्कृत में उपसगों की कुल संख्या 22  है। 

संस्कृत में ये उपसर्ग हैं : 
    1.  प्र. 
    2. परा, 
    3. अप, 
    4. सम्, 
    5. अनु. 
    6. अव, 
    7. निस्, 
    8. निर्, 
    9. दुस्, 
    10. दुर्, 
    11. वि, 
    12. आङ, 
    13. नि, 
    14. अधि, 
    15. अपि, 
    16. अति, 
    17. सु, 
    18. उत 
    19. अभि ,
    20.  प्रति, 
    21. परि, 
    22. अप् 
जैसे - आहारः, सम् + हार - संहारः, विहार विहार, प्रहार प्रहार, आहार आहार, सम्हार संहार, विहारः

परिहारः परिहार, उपहार- उपहारः ।

इन उपसर्गों की मदद से बने हुए शब्दों को देखने से पूर्व हमें कुछ मुख्य धातु ओके शाह उपसर्गों के प्रयोग को देखना आवश्यक होता है चलिए हम आपको कुछ विशेष धातुओं के साथ उपसर्ग का मेल दिखाते हैं | 


गम धातु के साथ उपसर्ग प्रयोग 

दरअसल गम एक ऐसा धातु है जिसका हम व्यहवारिक तौर पर बहुत ज्यादा इस्तेमाल करते हैं , गम से उत्पन्न शब्द गच्छति है जिसके साथ हम उपसर्ग का प्रयोग करेंगे | 
    • उपगच्छति = पास जाता है 
    • अनुगच्छति = पीछे-पीछे जाता है 
    • अवगच्छति = समजह्ता है 
    • अधिगच्छति = प्राप्त करता है 
    • प्रत्यागच्छति = लौटता है 
    • आगच्छति =आता है 
    • निर्गच्छति = निकलता है 
    • उद्गच्छति=  उड़ता है
    • संग्गच्छति = मिलता है 


भू धातु के साथ उपसर्ग प्रयोग 

भू धातु से बने शब्द का नाम है भवति जिसका अर्थ है होता है , तो चलिए हम भवति के साथ कुछ उपसर्ग के प्रयोग को देखते है -      
    • अभिभवति = तिरस्कार करता है 
    • उद भवति  = उत्पन्न  होता है
    •  परि भवति = हराता है 
    • अनुभवति = अनुभव करता है


सृ धातु से  उपसर्ग प्रयोग 

सृ धातु से उत्पन्न शब्द है सरति जिसका अर्थ है जाता है , तो हम सरति से उत्पन्न कुछ उपसर्ग प्रयोगो को देखेंगे 
    • अनुसरति = पीछे-पीछे जाता है 
    • प्रसरति = फैलता है 
    • अभिसरति = सेवा ककरता है , चुपके से जाता है 
    • निस्सरती = बहार निकलता है 
    • उपसरति = पास जाता है 
    • अपसरति = दूर हटता  है 


कृ धातु के साथ उपसर्ग प्रयोग 

कृ धातु से उत्पन्न शब्द है करोति,  जिसका अर्थ है करता है  , तो हम करोति से उत्पन्न कुछ उपसर्ग प्रयोगो को देखेंगे -
    • अनुकरोति = नकल करता है। 
    • अपाकरोति = दूर करता है । 
    • उपकरोति व्याकरोति = उपकार करता है । 
    • व्याकरोति = व्याख्या करता है । 
    • अपकरोति = बुराई करता है। 
    • विकरोति = दूषित करता है । 
    • अधिकरोति = अधिकार करता है ।


रूह धातु के साथ उपसर्ग प्रयोग 

रूह धातु से उत्पन्न मूल शब्द है रोहति जिसका अर्थ है चढ़ता है, तो चलिए हम रोहति  कुछ उपसर्ग प्रयोग को  देखते हैं -
    • अधिरोहति = चढ़ता है 
    • अवरोहति = उतरता है । 
    • आरोहति - सवारी पर चढ़ता है ।


लप् धातु के साथ उपसर्ग प्रयोग 

लप् धातु के साथ बना मूल शब्द है लपति , जिसका शाब्दिक अर्थ है बोलता है | एवं हम इनके साथ उपसर्ग को लगाके भिन्न भिन्न शब्द बनाएंगे एवं उसका अर्थ भी जानेंगे -
    • अपलपति = इनकार करता है । 
    • प्रलपति = प्रलाप करता है । 
    • विलपति =  विलाप करता है ।
    • आलपति = बात करता है

हर् धातु के साथ उपसर्ग प्रयोग 

हर् धातु का मूल व्युत्पन्न शब्द है हरति जिसका अर्थ होता है छिनता है | एवं अब हम इनके साथ उपसर्ग प्रयोग को देखेंगे
    • विहरति = घूमता है, सैर करता है । 
    • अनुहरति = नकल करता है । 
    • परिहरति = दूर करता है । 
    • उद्धरति = उद्धार करता है । 
    • उपहरति = भेंट चढ़ाता है । 
    • आहरति = लाता है । 
    • संहरति संहार करता है ।
    •  प्रहरति = प्रहार करता है ।

नी धातु के साथ उपसर्ग प्रयोग 

नी  धातु का मूल व्युत्पंनिक शब्द है नयति , जिसका अर्थ है ले जाता है | चलिए इनसे बने कुछ उपसर्ग के साथ प्रयोग के बाद शब्दों को देखते हैं -
    • अनुनयति = खुशामद करता है; प्रार्थना करता है। 
    • आनयति - लाता है । 
    • विनयति = झुकता है । 
    • विनयते = क्रोध शान्त करता है । 
    • अभिनयति = अभिनय करता है। 
    • परिणयति = शादी करता है । 
    • निर्णयति = निर्णय करता है । 
    • उपनयति = यज्ञोपवीत देता है।

सद् ्धातु के साथ उपसर्ग 

सद् धातु भी अन्य धातुओं के तरह एक व्युतपन्न शब्द के लिए जाना जाता है जो है सीदति , इसका अर्थ है दुखी होता है | तो चलिए सीदति में कुछ उपसर्गों का प्रयोग कर उसके अर्थ को जानते है -        
    • निषीदति = दुःखी होता है । 
    • उत्सादयति = नष्ट करता है। 
    • प्रसादयति = प्राप्त करता है ।
    • आसादयति = खुश करता है । 
    • प्रसीदति = प्रसन्न होता है ।

चर् धातु के साथ उपसर्ग प्रयोग 

चर् धातु भी अपने मूल रूप में न प्रयोग होकर चरति  से संतृप्त है जिसका मूल अर्थ है चरता है | तो चलिए अब इसमें कुछ उपसर्ग प्रयोग को देखते हैं -
    • आचरति = आचरण करता है । 
    • परिचरति = सेवा करता है । 
    • विचरति = घूमता है । 
    • उच्चरति  = बोलता है । 
    • अनुचरतिपीछे = पीछे चलता है ।
    • उपचरति = सेवा करता है ।

वद् धातु के के साथ उपसर्ग प्रयोग 

वद् धातु से व्युतपन्न शब्द है वदति जिसका अर्थ है बोलता है | इससे भी सम्बंधित कुछ उपसर्ग सबंध निम्न है -
    • अपवदति = गाली देता है । 
    • प्रतिवदति = जवाब देता है । 
    • अनुवदति = अनुवाद करता है।

स्था  धातु के साथ उपसर्ग संयोग 

स्था धातु के सन्दर्भ में बाकि जैसा हलन्त के मात्रा हटने मात्र से इसके व्युत्पंनक शब्द का अर्थ नहीं है बल्कि स्था का मूल शब्द है तिष्ठति, जिसका अर्थ होता है बैठना या ठहरता  है , तो चलिए इनसे जुड़े  शब्दों को देखत हैं -
    • अधितिष्ठति  = रहता है ।
    • अनुतिष्ठति = अनुष्ठान करता है । 
    • उत्तिष्ठति = उठता है। 
    • प्रतिष्ठति = विदा होता है । 
    • अवतिष्ठति = ठहरता है 
    • उपतिष्ठति = पूजा करता है या पास जाता है
इतने धातु रूपों के साथ उपसर्ग संयोजन देखने के बाद भी आपको यह संतुष्टि नहीं मिली होगी या कठिनाई होगी की संस्कृत व्याकरण के जो मूल रूप से 22 उपसर्ग है उनके संयोग से बने शब्द एक जगह कहा मिलेंगे , तो  हमने इसकी एक सूची बनाई है जो अधोलिखित है -

 संस्कृत में उपसर्ग से बने शब्द 

जैसा की आपको ज्ञात हो गया है की संस्कृत में कुल 22 उपसर्ग हैं जिसकी चर्चा हमने ऊपर कर दी है , तो अब हम उन सभी उपसर्गो के संयोग से बने कुछ शब्द देखेंगे जिससे आप को समझने में कोई दिक्क्त या परेशानी न हो -
    1. प्र - प्रचार प्रसार, प्रकार, प्रवेश, प्रकाश, प्रवाह, प्रभाव, प्रमाणः ।
    2. परा - पराजयः, पराभवः, परामर्शः, पराकाष्ठाः ।
    3. अप् - अपमानः, अपकारः, अपकर्षणम्, अपवादः, अपलापः, अपहारः । 
    4. सम् - संवादः, सञ्चारः, संस्कार, संसारः, संकोच:, संहारः, संलापः, सम्बोधनम्
    5. अनु - अनुभवः, अनुकृतिः, अनुगमनम्, अनुवाद, अनुचर: अनुसारम् ।
    6. अव- अवकाशः, अवरोध, अवमानः ।
    7. निस् - निश्चयः, निस्सरण, निष्ठा ।
    8. निर् - निराश:, निराहारः, नीरोगः, निर्णय, निर्दोषः, निर्दयः ।
    9. दुस् - दुर्जनः, दुष्ट, दुर्गमः, दुर्बोधः, दुष्कर्म, दुष्कालः, दुर्बलः ।
    10. दुर् - दुराचारः, दुरात्मा, दुराग्रह, दुराराध्यः ।
    11. वि - विहारः, विकासः, विश्वासः, विसर्गः, विरोध:, विरागः, विचारः, विषमम्, विच्छेदः
    12. आ - आचारः, आहार, आकार: आभारः, आसार, आरोह, आरामः ।
    13. नि - निषेधः, निदानम्, निवासः, निवेश:
    14. अधि -अधिकारः, अधिष्ठानम्, अधिमानम् ।
    15. अपि - इसका प्रयोग स्वतन्त्र अव्यय के रूप में होता है । 
    16. अति - अत्याचार अत्ययः, अतिसारः,अतीसम्, अतिवादः 
    17. सु - सुपुत्रः, सुदिनम्, सुरागः, सुस्वरम्, सुलेख:, सुगमम् ।
    18. उत् - उद्धारः, उन्नतिः, उद्योग, उद्दण्डः, उत्कोच:, उच्चारणम्, उत्तमः । 
    19. अभि - अभिज्ञान अभिमानः, अभियोगः, अभियानम्,अभिसारः, अभिभावः 
    20. प्रति - प्रतिकारः, प्रतिरोध:, प्रतिषेधः, प्रतिपक्षः, प्रतिदिनम्, प्रतिगृहम् ।
    21. परि-परिभवः, परिश्रमः, परिसरः, परिचारिका, परिचयः परिहार:, परिवाद:, परिजनः 
    22. उप - उपद्रवः, उपाध्यायः, उपाध्यक्ष, उपमंत्री, उपहारः, उपवास:

जानिये संस्कृत में कारक  और विभक्ति किसे कहते हैं 

चलते चलते 

चूँकि मैंने ऊपर 22 सभी उपसर्ग से बने शब्दों के बारे में बतया है परन्तु निस्, निर् और दुस्, दुर् के प्रयोग समान ही होते हैं । इसलिए इसे सामान अर्थ के रूप में ही माना  जाता है , आशा है की अब आपकी मन में संस्कृत में उपसर्ग सम्बन्धी कोई भी प्रश्न शेष न रहा होगा| 

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