अव्यय किसे कहते हैं। भेद, परिभाषा और उदाहरण

अव्यय किसे कहते है, अव्यय को आखिर क्यों हमें पढ़ाया जाता है ? क्या आप इन सभी प्रश्नों का उत्तर जानते हैं ,। अगर नहीं तो घबराने की कोई बात नहीं है, क्योंकि आज हम बताएंगे की आखिर अव्यय किसे कहते हैं

जब भी हम अव्यय की बात करते हैं , तो हमें शब्द विचार जरूर याद आता है क्योकि हमने सबसे पहले अव्यय के बारे में वही जाना होता है 

परन्तु हम वहां सिर्फ सम्बन्धबोधक और विस्मयादिबोधक अव्यय के बारे में जानते हैं, परन्तु वहां हमने यह नहीं पता होता है की आखिर अव्यय किसे कहते हैं ?

अव्यय किसे कहते हैं या अव्यय की परिभासा अत्यंत सरल है जिसे आप आसानी से जानकर समझ सकते हैं , दरअसल संस्कृत में कहा गया है कि न व्येति, न विकारमेति इति अव्ययम्। 

अव्यय क्या है 

अर्थात् जो विकार को प्राप्त नहीं करता कभी घटता-बढ़ता नहीं, उसे अव्यय कहते है। दूसरे शब्दों में कहे तो , अव्यय या अविकारी शब्द  वह है, जिसका रूप लिंग, वचन, पुरुष, कारक इत्यादि के कारण कोई विकार उत्पन्न नहीं होता। 

जैसे- कब, क्यों,जब, तब, अभी इत्यादि।

साधारण शब्दों मे कहा जाए तो, ऐसे शब्द जिसके रूप मे लिंग, वचन, पुरुष, कारक इत्यादि मे परिवर्तन के बावजूद कोई विकार नहीं उत्पन्न होता है उसे अव्यय कहते है । 

अगर एक वाक्य से इसे समझना चाहे तो इसे ऐसे समझा जा सकता है - राम धीरे- धीरे चलता है । 

यहाँ धीरे-धीरे अव्यय है ऐसे शब्दों मे किसी भी परिस्थिति मे कोई परिवर्तन नहीं होता है । इसलिए ये शब्द अविकारी होते है अव्यय शब्दों के कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं - 

जब,तब, अभी, इधर, उधर, इसलिए, अतः, ठीक, अर्थात, इत्यादि । 

अव्यय शब्द से संबोधित सबसे पहले समझ में आता है कि यह कुछ अनावश्यक है। लेकिन इससे बहुत अधिक है। अव्यय को समझने के लिए हमें पहले स्वरूप के साथ समझने की आवश्यकता होती है।

स्वरूप को समझने के लिए, हम सबसे पहले समझते हैं कि समझने के लिए कुछ शब्द की आवश्यकता होती है। जैसे कि "मैं" और "तुम" आदि के साथ हम अपने व्यक्ति को समझ सकते हैं। लेकिन कुछ शब्द शब्द को समझने के लिए कुछ अन्य शब्दों की आवश्यकता होती है, जैसे कि कुछ के साथ "हम" और "आप" आदि के साथ।

अव्यय के कार्य 

अव्यय के निम्नलिखित कार्य हैं

(क) वे क्रिया का स्थान, दिशा, समय, रीति, कारण, परिमाण, तुलना, सादृश्य तथा उद्देश्य आदि बतलाते हैं।

(ख) कुछ अव्यय शब्दों, पदबंधों, उपवाक्यों या वाक्यों को जोड़ते हैं।

(ग) कुछ अव्यय विस्मय, हर्ष आदि का भाव व्यक्त करते हैं। 

(घ) कुछ अव्यय संबोधन का द्योतन करते हैं।

(ड.) कुछ अव्यय अवधारणा, बल, निषेध, स्वीकार आदि व्यक्त करते हैं।

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अव्यय के भेद 

वास्तविक रूप से अव्यय चार प्रकार के  होते हैं :

(1) क्रिया-विशेषण (2) संबंधबोधक ( 3 ) समुच्चयबोधक और (4) विस्मयादिबोधक

इन सब के अलावे दो ऐसे भेद हैं जिन्हें संस्कृत व्याकरण में अव्यय का ही भेद माना जाता है।

वह है : - उपसर्ग  तथा चादि 

अव्यय शब्द को समझने के लिए, हमें पहले से ही समझ में होने वाले कुछ भेदों को समझना पड़ता है। यह भेद समय, स्थान, संबंध आदि के साथ संबोधित हो सकते हैं।

समय के साथ संबोधित अव्यय को पहले के समय के अव्यय और वर्तमान के समय के अव्यय के रूप में स्थान देते हैं। उदाहरण के लिए, "मैं खाता हूँ" वर्तमान के समय का अव्यय होता है और "मैं खाया था" पहले के समय का अव्यय होता है।

स्थान के साथ संबोधित अव्यय को स्थान के अव्यय के रूप में स्थान देते हैं।

क्रियाविशेषण क्या है ?

वह अव्यय जो क्रिया की विशेषता बतलाता है उसे क्रिया विशेषण अव्यय कहते हैं। 

जैसे-अंतर, प्रातः, पुनः, ऊंचा, नीचा, धीरे, बिना, पृथक, दिन, रात, शाम, लंबा, छोटा, बाहर, अंदर, निकट, दूर, अंतरा, अंतरण, नाना, पूरा, निश्चय, 

सरल शब्दों में कहे तो जिस शब्द से क्रिया, विशेषण अथवा दूसरे क्रिया विशेषण की विशेषता प्रकट हो उसे क्रिया विशेषण कहते हैं। 

जैसे-गाय धीरे-धीरे चरती है। वह बहुत धीरे चलता है।

इन वाक्यों मे धीरे धीरे और बहुत धीरे , चलने और चरने की विशेषता बतलाता है । 

क्रियाविशेषण को समझने के लिए, हमें पहले से ही समझ में होने वाले क्रिया को समझना पड़ता है। क्रिया को समझने के लिए, हम सबसे पहले समझते हैं कि कोई काम किया जा रहा है। क्रियाविशेषण किसी क्रिया को समझने के लिए कोई अतिरिक्त जानकारी प्रदान करते हैं।

उदाहरण के लिए, "सुन रहा हूँ" क्रिया को समझते हुए संबोधित करता है कि कोई कुछ सुन रहा है। लेकिन "सुन रहे हुए" क्रियाविशेषण को समझते हुए संबोधित करता है कि कोई कुछ सुन रहा है और इससे सम्बंधित कोई काम जारी है.

क्रियाविशेषण के प्रकार 

क्रियाविशेषण मुख्य रूप से तेरह (13)  प्रकार के हैं ;-

(क) स्थानवाचक : जो स्थान का बोध कराये। जैसे-निकट, पास, भीतर, यहाँ वहाँ आदि।

(ख) दिशावाचक: जो दिशा का बोध कराये। जैसे- इधर उधर, इस ओर, किधर की तरफ आदि। 

(ग) कालवाचक : जो काल का बोध कराये। जैसे- अब, जब, कब, कल, परसों, पहले, पीछे, बाद में सबेरे, सुबह आदि। 

(घ) रीतिवाचक: जो क्रिया के होने या किये जाने की रीति बताये। जैसे-ऐसे कैसे, वैसे, यो आदि।

(ङ) अकस्मात् वाचक - जिससे अचानकपन या हठात् का बोध हो। जैसे-ह एकाएक आदि। 

(च) निश्चयवाचक: जिससे निश्चय का बोध हो। जैसे अवश्य, निश्चय है, अलबत्ता, बेशक आदि।

(छ) यथार्थवाचक: जिससे यथार्थता (वास्तविकता) का बोध हो। जैसे- यथार्थ, वस्तुतः, वास्तव में आदि। 

(ज) अनिश्चियवाचक - जिससे निश्चितता का बोध न हो। जैसे-शायद, यथासंभव ,आदि।

(झ) स्वीकारवाचक: जी हाँ, ठीक है, अच्छा, सही है आदि। 

(ञ) निषेधवाचक : जिससे अस्वीकृति प्रकट हो। जैसे-न, न न, नहीं, ना, मह नतो......और ना

(ट) कारणवाचक जो कारण बताए। जैसे क्योंकि, इसलिए, अतः, के कारण आदि

(ठ) परिमाणबोधक- जो परिमाण या मात्रा का बोध कराये। जैसे-इतना, उतना, बहुर कम आदि। 

(ड) अवधारणवाचक जिससे अवधारण (विचारसहित निर्धारण) का बोध हो। जैसे ही, तो, भी, न, तक आदि।


★ प्रयोग के अनुसार क्रियाविशेषण  के तीन भेद हैं

 ( 1 ) साधारण: जिन क्रियाविशेषणों का प्रयोग किसी वाक्य में स्वतंत्र होता है। जैसे :-बेटा, जल्दी आओ। 

(2) संयोजक क्रियाविशेषण :  जिन क्रियाविशेषणों का संबंध किसी उपवाक्य से रहता है। जैसे-जहाँ वह अभी खड़ा है, वहाँ पहले साँप था।

(3) अनुबद्ध क्रियाविशेषण- - जिन क्रियाविशेषणों के प्रयोग अवधारण (निश्चय) के लिए किसी भी शब्दभेद के साथ होता है। जैसे मैंने उसे देखा तक नहीं। 


★ 'रूप' के अनुसार क्रियाविशेषण के तीन भेद हैं

(1) मूल क्रियाविशेषण-  ऐसे क्रियाविशेषण, जो किसी दूसरे शब्दों के मेल से नहीं बनते। जैसे- ठीक, दूर, अचानक आदि।

(2) यौगिक क्रियाविशेषण-  ऐसे क्रियाविशेषण, जो किसी दूसरे शब्द में प्रत्यय या पद जोड़ने पर बनते हैं। जैसे वह चुपके से चला आया। 

                ★ यौगिक क्रियाविशेषण निम्नलिखित शब्दों के मेल से बनते हैं

    • (क) संज्ञाओं की द्विरुक्ति से घर-घर, बीच-बीच आदि। 
    • (ख) दो भिन्न संज्ञाओं के मेल से दिन-रात, घर-बाहर आदि।
    • (ग) विशेषणों की द्विरुक्ति से एक-एक, साफ-साफ आदि। 
    • (घ) क्रियाविशेषणों की द्विरुक्ति से-धीरे-धीरे, कब-कब आदि ।
    • (ङ) दो क्रिया विशेषणों के मेल से जहाँ-तहाँ, जब तब आदि ।
    • (च) दो भिन्न या समान क्रियाविशेषणों के बीच 'न' लगाने से- कभी-न-कभी,कुन-कुछ आदि।
    • (छ) अनुकरणवाचक शब्दों की दिरुक्ति से पटपट, सटासट आदि। 
    • (ज) संज्ञा और विशेषण के योग से एक साथ एक बार दो बार आदि।
    • (भ) अव्यय और दूसरे शब्दों के मेल से प्रतिदिन, अनजाने आदि।
    • (ञ) पूर्वकालिक कृदन्त और विशेषण के मेल से विशेषकर, एक-एककर आदि

(३) स्थानीय क्रियाविशेषण--जो बिना रूपान्तर के किसी विशेष स्थान में आते हैं। जैसे- वह अपना सिर पड़ेगा।


* कुछ समानार्थक क्रियाविशेषणों में अन्तर

अब-अभी -   'अब' में वर्तमान समय का अनिश्चय है और 'अभी' का अर्थ तुरन्त से है। जैसे- अब आप खा सकते हैं। अभी पाँच बजे हैं।

तब-फिर-   'तब' बीते हुए समय का बोधक है और 'फिर' भविष्य की और संकेत करता है। 'सब' का अर्थ 'उस समय' है और 'फिर' का अर्थ 'दुबारा' है। जैसे-तब उसने सोचा, फिर ऐसा होगा।

कहाँ-कहीं-   'कहाँ' किसी निश्चित स्थान का बोधक है और 'कहीं' किसी अनिश्चित स्थान का परिचायक है। 'कहीं' का प्रयोग कभी-कभी निषेध के अर्थ में भी होता है। 

जैसे-वहाँ कहाँ गया? वह भी कहीं पढ़ सकता है? वह कहीं भी जा सकता है। 


न-नहीं-मत-   'न' से साधारण-निषेध, 'नहीं' से निषेध का निश्चय सूचित होता है तथा 'म का प्रयोग निषेधात्मक आज्ञा के लिए होता है। जैसे-जाओ न, रुक क्यों गए? तुम नहीं पढ़ सकते। भीतर मत जाओ।

ही-भी -  दोनों बलदायक है। 'ही' का अर्थ एकमात्र और 'भी' का अर्थ अतिरिक्त सूचित करता है। जैसे इस गाने को तुम भी गा सकते हो। इस गाने को तुम ही गा सकते हो। 

केवल मात्र -   'केवल' अकेला का अर्थ और 'मात्र' सम्पूर्णता का अर्थ सूचित करता है। जैसे- यह काम केवल वह कर सकता है। इसके मूल्य मात्र पाँच रुपये हैं।

भला- अच्छा-    'भलो' का प्रयोग अधिकतर विशेष के रूप में प्रयुक्त होता है, पर कभी-कभी संज्ञा के रूप में भी आता है। 'अच्छा' स्वीकृतिमूलक अव्यय है। 

यह कभी अवधारण के लिए और कभी विस्मयबोधक के रूप में भी प्रयुक्त होता है। जैसे-अच्छा, आप आ गए! भला  का भला फल मिलता है।


प्राय बहुधा-     'प्रायः' से 'बहुधा' की मात्रा अधिक होती हैं, पर दोनों का प्रयोग ‘अधिकतर' के लिए होता है। जैसे छात्र प्रायः चंचल होते हैं। बच्चे बहुधा हठी होते हैं। 

बाद-पीछे- 'बाद' काल का और 'पीछे' समय का सूचक है। जैसे-वह चार दिन बाद आयेगा। वह पढ़ने में राम से पीछे है।

सम्बन्धबोधक अव्यय किसे कहते हैं ?

"जिन अव्यय शब्दों से संज्ञा या सर्वनाम का सम्बन्ध वाक्य से दूसरे शब्दों से जाना जाता है, उन्हें सम्बन्धबोधक अव्यय कहते हैं।" जैसे राम के बिना मैं नहीं पढ़ सकूँगा। 

★ सम्बन्धबोधक अव्यय के निम्नलिखित कार्य हैं

(क) किसी वाक्य में संज्ञा के बाद आकर उसका सम्बन्ध उस वाक्य के दूसरे शब्दों से बताना।
(ख) काल, स्थान, साध्य तथा तुलना का बोध कराना। 

संबंधबोधक अव्यय के भेद 

★ प्रयोग के अनुसार सम्बन्धवाचक अव्यय के दो भेद हैं 

1, सम्बद्ध और 2. अनुबद्ध

(1) सम्बद्ध  :- यह संज्ञा की विभक्तियों के पीछे आता है। जैसे-धन के बिना कैसे कोई रह पायेगा?

(2) अनुबद्ध - यह संज्ञा के विकृत रूप के बाद आता है। जैसे-राधा सखियों सहित मथुरा पधारी। 


★ अर्थ के अनुसार 'सम्बन्धबोधक अव्यय' के निम्नलिखित भेद हैं

कालवाचक-  पश्चात्, पहले, बाद, आगे आदि।

स्थानवाचक- समीप, भीतर, आदि।

सादृश्यवाचक-  समान, तरह, तुल्य, भाँति आदि।

तुलनावाचक- अपेक्षा, आगे, सामने आदि।

विनिमयवाचक - बदले, जगह, पलटे आदि। 

विरोधवाचक - उलटा, विपरीत, खिलाफ आदि।

विषयवाचक- भरोसे, बाबत, नाम आदि। 

व्यतिरेकवाचक- बगैर बिना अलावे आदि।

संग्रहवाचक - भर, पर्यन्त तक आदि।

सहचरवाचक - समेत, सहित, संग, साथ आदि।

साधनवाचक- द्वारा, सहारे, मार्फत आदि। 

दिशावाचक- ओर तरफ, पार आदि।


★ व्युत्पत्ति के अनुसार 'सम्बन्धबोधक अव्यय' के दो भेद हैं

(1) मूल संबंध बोधक अव्यय-  बिना पर्यन्त, नाई, पूर्वक आदि।

(2) यौगिक संबंधबोधक अव्यय - ये दूसरे शब्द-भेदों से बने होते हैं। जैसे- संज्ञा से-ओर, विषय, नाम आदि। विशेषण- उलटा, तुल्य, सरीखा आदि। 

क्रिया जान करके, लिए, मारे आदि। क्रियाविशेषण- भीतर, ऊपर, पीछे, परे आदि।



कई 'कालवाचक' और 'स्थानवाचक' अव्यय 'सम्बन्धबोधक' और 'क्रियाविशेषण' दोनों होते हैं। जब उनका प्रयोग संज्ञा या सर्वनाम के साथ होता है, 

तब वे 'सम्बन्धबोधक अव्यय' होते हैं और जब वे क्रिया की विशेषता प्रकट करते हैं, तब 'क्रिया-विशेषण' होते हैं। जैसे यह काम पहले करो (क्रिया-विशेषण)। यह काम स्नान से पहले करो। (संबंधबोधक अ०)



समुच्चयबोधक अव्यय किसे कहते हैं 

“जो अव्यय दो या अधिक वाक्यों को जोड़ते या अलग करते हैं, उन्हें 'समुच्चयबोधक अव्यय ' कहते हैं। जैसे-वह आया और यह गया। 
संबंधित लेख :- भाषा किसे कहते हैं 

समुच्चयबोधक अव्यय के भेद

समुच्चयबोधक अव्यय के दो भेद हैं  :-

(1) समानाधिकरण समुच्चयबोधक - इसके द्वारा मुख्य वाक्य जोड़े जाते हैं। ये चार प्रकार के होते हैं
    • (क) संयोजक - इनसे दो या अधिक वाक्यों का संग्रह होता है। जैसे-और, एवं, तथा आदि। 

    • (ख) विभाजक - जो दो या अधिक वाक्यों को जोड़ने पर उनके अर्थ को बाँट देते हैं। जैसे- अथवा, या, किंवा, कि, नहीं तो आदि। 

    • (ग) विरोधदर्शक - जैसे-परंतु, लेकिन, अगर आदि। ये वाक्य के द्वारा पहले का निषेध या अपवाद सूचित करते हैं।

    • (घ) परिणाम दर्शक - इनसे जाना जाता है कि इनके आगे के वाक्य का अर्थ पिछले वाक्य के अर्थ का फल है। जैसे-अतः, इसलिए, आदि। 
2. व्यधिकरण समुच्चयबोधक-  इनके द्वारा एक मुख्य वाक्य में एक या अधिक आश्रित वाक्य जोड़े जाते हैं।

ये भी चार प्रकार के होते हैं

(क) स्वरूपवाचक दो वाक्यों में जिन अव्यय शब्दों द्वारा पूर्व बात का अधिक स्पष्टीकरण होता है, उन्हें 'स्वरूपवाचक' अव्यय कहते हैं। जैसे कि, जो, अर्थात् आदि। 

(ख) कारणवाचक - पूर्व वाक्य के अर्थ का कारण उत्तर वाक्य के अर्थ से जो सूचित करे। जैसे- क्योंकि, जो कि आदि।

(ग) उद्देश्यवाचक-  इस अव्यय के बाद आने वाला वाक्य दूसरे वाक्य का उद्देश्य सूचित करता है। जैसे कि, जो, ताकि, इसलिए आदि।

(घ) संकेतवाचक-  जिन अव्यय शब्दों से वाक्यों में संकेत अथवा शर्त स्पष्ट होती है। जैसे- किसी, यदि तो, जो-जो, चाहे या तो आदि । 
जो अव्यय दो-दो करके एक साथ आते हैं, वैसे 'नित्यसंबंधी' कहलाते हैं। जैसे-यद्यपि तथापि, जो-तो, यदि- तो इत्यादि।

 

विस्मयादिबोधक अव्यय किसे कहते हैं ?

"जिस शब्द से विस्मय, हर्ष, शोक, घृणा तथा उद्वेग आदि मनोविकारों का बोध हो, उसे विस्मयादिबोधक अव्यय कहते हैं। जैसे-हाय! अहा! आदि।

विस्मयादिबोधक अव्यय के भेद 

★ विस्मयादिबोधक के निम्नलिखित भेद हैं
    1. हर्षबोधक - अहा!, वाह-वाह!, शाबाश! आदि।
    2. शोकबोधक- आह!, ऊहा, हा-हा! आदि।
    3. आश्चर्यबोधक- वाह!, हैं!, ऐ!, ओहो! आदि ।
    4. अनुमोदनबोधक - ठीक!, वाह, हाँ-हाँ आदि।
    5. तिरस्कारबोधक- छिः!, हट!, अरे! दुर् आदि ।
    6. स्वीकारबोधक- हाँ, जी हाँ!, अच्छा!, आदि।
    7. सम्बोधनबोधक- अरे!, रे!, अजी, लो! आदि।

अव्यय के उदाहरण

नीचे कुछ प्रमुख अव्यय के उदाहरण दिए गए हैं : -

अचानक :- मोहन अचानक ही आया
आगे - पुस्तक आगे रखकर ही पढ़ा जाता है। 
शीघ्र - शीघ्र ही तुम फल पाओगे। 
यहां -  यहां किसान रहते हैं.
वहां - कल वहां एक मंदिर था। 
कहां - तुम कहां जा रहे हो ?
जहां - जहां जगह हो वहां बैठ जाओ। 
सर्वत्र - साधु सर्वत्र नहीं मिलते। 
परत्र - पुण्यवान लोग परत्र में भी सुख पाते हैं। 
एकत्र - वह एकत्र ही कहीं होंगे। 
अन्यत्र - वह कहीं अन्यत्र चला गया। 
आजकल - आजकल देश में बहुत महंगाई है। 
पश्चात - इसके पश्चात उसका संगीत महोत्सव है। 
अद्य - अद्य पर भरोसा रखो। 
एकदा - ऐसी घटनाएं मेरे साथ एक दा हुई थी। 
यदा - यदा मैं कुछ करता हूं तुम जरूर ठोक देते हो। 
शीघ्र - कुछ काम शीघ्र ही करनी चाहिए। 
परंतु - वर्षा होती है परंतु कम कम। 
कदाचित - कदाचित तुम कुछ बोल रहे हो। 
अल्प - अल्प निद्रा स्वास्थ्य के लिए बेहतर होती है।
मिथ्या - मिथ्या भाषण करना बंद करो। 
एकांत - एकांत चिंतन का सबसे श्रेष्ठ स्थान होता है। 
तथा - राम तथा मोहन आपस में झगड़ते हैं। 
किंतु - तुम जाओ किंतु मैं यही करूंगा। 

आखरी शब्द 

तो आज आपने जान की आखिर अव्यय किसे कहते हैं , अगर अव्यय से संबधित कोई अन्य जानकारी या सुझाव आप पास हो तो हमें कमेंट कर के जरूर बातएं। 

 ताकि हम अपने आर्टिकल को और बेहतर बना सके। आशा है अब आपके मन में अव्यय किसे कहते है या अव्यय से सम्बंधित कोई प्रश्न शेष नहीं होगा।  

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