प्रत्यय किसे कहते हैं - भेद, परिभाषा एवं उदाहरण

जब भी हम शब्द के आखिर में कुछ जोड़कर नया शब्द बनाने की सोचते हैं तब हमारे मन में यह सवाल आता है कि आखिर प्रत्यय किसे कहते हैं ?  

आज के इस आर्टिकल में हम जानेंगे कि प्रत्यय किसे कहते हैं, प्रत्यय कितने प्रकार के होते हैं तथा उनके विभिन्न प्रकारों का पूर्ण अध्ययन करेंगे। अगर आपने उपसर्ग के बारे में नहीं पढ़ा तो जरूर पढ़ें :-


संस्कृत में कहा गया है कि प्रतीयते अर्थः अनेन इति प्रत्ययः । अर्थात् जिसके द्वारा अर्थ जाना जाता है, उसे 'प्रत्यय' कहते है, हमें पता है कि आप हमारे इस परिभाषा से बिल्कुल भी संतुष्ट नहीं होंगे। 

 परंतु अगर हम इसे ही दूसरे शब्दों में कहें तो  'जो शब्दांश शब्दों के अन्त में जुड़कर उनके ही अर्थ को बदल देते हैं, उसे हम प्रत्यय कहते हैं।'  जैसे- बूढ़ा + पा = बुढ़ापा आदि।

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प्रत्यय के भेद

हिंदी व्याकरण में प्रत्यय  प्रमुख रूप से चार प्रकार के माने गये हैं :- 

( 1 ) विभक्ति प्रत्यय - संज्ञा या सर्वनाम शब्दों के साथ ने, को, से, में, पर, का, की, के इत्यादि प्रत्ययों का प्रयोग होता है। ये कारक के चिह्न हैं। अतः ये हमें  'विभक्ति-प्रत्यय' के नाम से जाने जाते हैं।

(2) स्त्री-प्रत्यय - ई, इन, आइन, आनी इका इत्यादि प्रत्ययों के लगाने से जो शब्द स्त्रीलिंग होते हैं, वे 'स्त्री-प्रत्यय' कहलाते हैं। जैसे - बेटी (ई), दर्जिन (इन), सेठानी (आनी), पाठिका (इका) आदि।

( 3 ) कृत्-प्रत्यय – "क्रिया या धातु के अन्त में प्रयुक्त होने वाले प्रत्ययों को 'कृत्' प्रत्यय कहते हैं।  

कुछ प्रमुख प्रत्यय के उदाहरण

    1. समाज + इक = सामाजिक
    2. लोहा + आर = लोहार 
    3. सोना + आर = सोनार 
    4. रिक्सा + वाला = रिक्सावला 
    5. पुराण +  इक = पौराणिक
    6. राधा + ेय = राधेय 
    7. वेद + इक = वैदिक
    8. पशु + ता = पशुता 
    9. महत + इमा = महिमा
    10. कवी + त्व = कवित्व 
    11. सुन्दर + ता = सुंदरता 
    12. बुद्धि + मान = बुद्धिमान 
    13. श्रद्धा + वान = श्रद्धावान 
    14. स्वर्ण +मय  = स्वर्णमय 
    15. सेवा + भाव = सेवाभाव 
    16. निष्ठा + वान = निष्ठावान 
    17. शिव + आ = शिवा 
    18. सरल + आ = सरला 
    19. मनोहर + ई  = मनोहारी 
    20. धन + वती = धनवती 
    21. गौर + ई = गौरी 
    22. कनिष्ठ + आ = कनिष्ठा

कृदंत किसे कहते हैं

 कृत प्रत्यय के मेल से बने शब्द को 'कृदन्त' कहते हैं। जैसे करना वाला करने वाला आदि। 

कृदंत के भेद

रूप के अनुसार 'कृदन्त' के दो भेद हैं- (क) विकारी कृदन्त और अविकारी कृदन्त ।

★ विकारी कृदन्त के भी चार प्रकार हैं
    • (क) क्रियार्थक संज्ञा
    • (ख) कर्तृवाचक संज्ञा
    • (ग) वर्तमानकालिककृदन्त और
    • (घ) भूतकालिककृदन्त ।

हिन्दी क्रिया पदों के अन्त में कृत्-प्रत्ययों के योग से छः प्रकार के कृदन्त बनाये जाते हैं :-  

(1) कर्तृवाचक-  कर्तृवाचक कृत् प्रत्यय वे हैं जिनके मेल से बने शब्दों से क्रिया (व्यापार) के करने वाले का बोध होता है। जैसे वाला द्वारा सार इत्यादि ।
    • ★ कर्तृवाचक कृदन्त बनाने की निम्नलिखित विधियाँ हैं

    • (क)क्रिया के सामान्य रूप के 'ना' को 'ने' करके आगे 'वाला' जोड़कर। जैसे पढ़ना + वाला = पढ़नेवाला। 

    • (ख) क्रिया के सामान्य रूप में 'ना' को 'न' करके आगे 'हार' या 'सार' लगाकर। जैसे मिलना + सार = मिलनसार 

    • (ग) धातु के आगे अक्कड़, आक, आक, आका, आड़ी, आलू, इयल, इया, ऊ, एरा, ऐत, ऐया, ओडा, कवैया इत्यादि प्रत्यय लगाकर। जैसे- लड़ आका- लड़ाका 

( 2 ) गुणवाचक- जिनसे बने शब्दों से किसी विशिष्ट गुण का बोध हो। ये शब्द - आऊ,आवना, इया, वाँ इत्यादि प्रत्यय जोड़कर बनाये जाते हैं। 

जैसे- टिकना, आऊ = टिकाऊ। 


( 3 ) कर्मवाचक - वे प्रत्यय, जिनसे बनी हुई संज्ञा से कर्म का बोध हो। ये प्रायः धातु में औना, ना और नती प्रत्ययों के लगाने से बनते हैं। 

जैसे- विछना औना = बिछौना | 

(4) करणवाचक- वे प्रत्यय, जिनसे बनी हुई संज्ञाओं से क्रिया के साधन का बोध हो । ये प्रायः धातुओं के अन्त में आ, आनी, ऊ, न, ना, औटी, ई, नी और औना प्रत्ययों के लगने से बनते हैं। 

जैसे- कस औटी कसौटी। 


(5) भाववाचक -वे प्रत्यय, जिनसे बनी हुई संज्ञाओं से भाव (क्रिया के व्यापार) का बोध होता है। धातु के अन्त में अ, अन, आ, आई, आन, आप, आवट, आव, आस आहट, ई, एरा, औती, त, ती, ति, न, ना, नी, इत्यादि प्रत्ययों के जुड़ने से बनते हैं। जैसे- टहलना = टहलना, रटंत, मेल, थकावट आदि। 

कई धातुओं के मूल रूप और भाववाचक कृदन्त एक समान होते हैं। जैसे- दौड़, खोज आदि।
धातु के बाद 'ना' लगाकर बना हुआ क्रिया का साधारण रूप भी 'भाववाचक संज्ञा के समान प्रयुक्त होता है। जैसे- पढ़ना सबके लिए जरूरी है। टहलना स्वास्थ्य के लिए लाभकर है। 
(6 ) क्रियाद्योतक-  क्रियाद्योतक प्रत्यय वे हैं, जिनसे क्रियाओं के समान ही भूत या वर्तमान काल के वाचक विशेषण या अव्यय बनाये जाते हैं। 

मूल धातु के आगे 'आ' अथवा 'वा' प्रत्यय लगाने से भूतकालिक तथा 'ता' प्रत्यय लगाने से वर्तमान कालिक कृदन्त बनते हैं। 


कहीं-कहीं आवश्यकतानुसार 'हुआ' भी जोड़ देते हैं। जैसे लिख आलिखा (भूतकाल), दौड़ता दौड़ता (वर्तमान काल )। कर्तृवाचक प्रत्ययों से 'संज्ञा' और 'विशेषण' दोनों बनते हैं। 

गुणवाचक से केवल विशेषण और कर्म, करण तथा भाववाचक प्रत्ययों से सिर्फ संज्ञाओं का ही निर्माण होता है। क्रियाद्योतक प्रत्ययों से विशेषण तथा अव्यय दोनों बनते हैं।

तद्धित प्रत्यय किसे कहते हैं ?


'संज्ञा, सर्वनाम और विशेषण के अन्त में लगने वाले प्रत्यय को 'तद्धित' कहा जाता है और इनके मेल से बने शब्द को 'तद्धितान्त' कहते हैं।" जैसे- मानव + ता मानवता, अपनापन अपनापन ।

तद्धित प्रत्यय के कितने भेद होते हैं

हिंदी व्याकरण के अनुसार तद्धित-प्रत्यय के मुख्य आठ भेद हैं :- 

(क) कर्तृवाचक तद्धित- प्रत्यय ये हैं- आर, इया, ई, उआ, एरा, एडी वाला आदि इनके जुड़ने से किसी काम के करने वाले, बनाने वाले या बेचने वाले अर्थ का बोध होता है। जैसे- सोना + आर सुनार । तेल + ई = तेली साँप + एरा = सँपेरा।

(ख) भाववाचक तद्धित-प्रत्यय-  भाववाचक प्रत्ययों को संज्ञा या विशेषण के साथ जोडने से भाव का बोध होता है। 

ये प्रत्यय हैं- आ, आई, आस, आयँध, आहट, पो, घन, तु, ता, त्व, नी, क आदि । जैसे- मीठा+आस मिठास। चतुर + आई = चतुराई। 


अ, इमा, ता, त्व, य आदि भाववाचक संस्कृत प्रत्यय युक्त शब्द भी हिन्दी में आते हैं। जैसे- शैशव, लाघव, अरुणिमा, कालिमा, सुन्दरता, आलस्य, माधुर्य तथा लालित्य आदि। 

(ग) ऊनवाचक तद्धित-प्रत्यय-  ऊनवाचक तद्धित प्रत्यय हैं आ, इया, ओल, डा, डी, री इत्यादि। 

जैसे- बबुआ, खटिया, खटोली, सँपोला, बछड़ा, पलँगड़ी, छतरी इत्यादि ऊनवाचक संज्ञाओं से वस्तु की लघुता, प्रियता, हीनता आदि के भाव प्रकट होते हैं।

(घ) अपत्यवाचक तद्धित-प्रत्यय - ये संस्कृत के प्रत्यय हैं, जिनसे आन्तरिक परिवर्तन होता है। 

जैसे- रघु से राघव, कुरु से कौरव, दशरथ से दाशरथी, वसुदेव से वासुदेव आदि । 

(ङ) संबंधवाचक तद्धित-प्रत्यय- इससे संबंध का बोध होता है। ये प्रत्यय हैं- एरा, आल, जा, दान आदि। 

जैसे - मामा + एरा ममेरा, ससुर आल ससुराल, कलम दान + कलमदान।

(च) गुणवाचक तद्धित-प्रत्यय-  गुणवाचक प्रत्ययों के संयोग से बने शब्द पदार्थ का गुण प्रकट करते हैं। 

जैसे- भूखा, प्यासा, चौथा, झगड़ालू, रसीला आदि। ये प्रत्यय इस प्रकार हैं- आ, आऊ, आलू, ईला, उआ, ई, ऊ, ऐत, ऐला, ओं, ठा, या, ना, ला, वा, वाला, हा इत्यादि ।

(छ) स्थानवाचक तद्धित-प्रत्यय-  ई, इया, अना, डी, इस्तान, गाह इत्यादि 'स्थानवाचक तद्धित-प्रत्यय' हैं। 

जैसे- पंजाब + ई-पंजाबी, पाक + इस्तान पाकिस्तान आदि। 

(ज) अव्ययवाचक तद्धित-प्रत्यय-  आँ, अ, ओं, तना, भर, यों आदि 'अव्ययवाचक बद्धत-प्रत्यव' हैं। जैसे- यहाँ, वहाँ, ज्यों, रातभर, कितना आदि।  


तद्धित प्रत्यय से बने शब्द

यूं कहा जाए तो,  तद्धित-प्रत्यय अनन्त हैं, और इन से बनने वाले शब्द भी अनंत हैं।  फिर भी इनके योग से तीन प्रकार के शब्द बनते हैं-

(i) संज्ञाओं में प्रत्यय जोड़ने से विशेषण, जैसे- बिहार + ई = बिहारी, ग्राम + ईन = ग्रामीण आदि।

(ii) विशेषणों में प्रत्यय लगाकर भाववाचक संज्ञाएँ जैसे- भला + आई = भलाई, बूढ़ा +पा = बुढ़ापा आदि। 

(iii) संज्ञा, सर्वनाम तथा विशेषणों से अव्यय की रचना; जैसे- आप + स = आपस, कोष + औं = कोसों। 


आखिरकार :::

आखिरकार हमने जाना कि प्रत्यय उस अक्षर या अक्षर समूह को कहते हैं जो शब्द रचना के निमित्त किसी शब्द के अंत में लग कर उसके स्वरूप और अर्थ में विशेषता ला देता है।  

हमने यह भी जाना कि प्रत्यय शब्द के अंत में ही जोड़े जाते हैं।  आशा है इस आर्टिकल को पढ़ने के बाद आपके मन में प्रत्यय किसे कहते हैं या प्रत्यय से संबंधित अन्य कोई सवाल नहीं आएगा। 

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