उपसर्ग किसे कहते हैं ? Upsarg in Hindi

उपसर्ग किसे कहते हैं, क्या संस्कृत और हिंदी व्याकरण में उपसर्ग अलग अलग होते हैं ? और भी कई ऐसे सवाल हैं जो आये दिनों हम खोजते रहते हैं। 

इन सब में सबसे महत्वपूर्ण यह है उपसर्ग की  परिभाषा , तो आज हम बताएंगे आपको उपसर्ग किसे कहते हैं

हिंदी व्याकरण में उपसर्ग का बहुत ही ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है, क्योंकि उपसर्ग के बिना कहे तो व्याकरण अधूरा है। 

इसीलिए हमें यह जानना बहुत आवश्यक है कि आखिर उपसर्ग किसे कहते हैं, और कौन-कौन से उपसर्ग होते हैं जिसकी मदद से हम किसी भी शब्द का पता कर सकते हैं। 

संस्कृत में कहा गया है कि उपसृज्यन्ते धातूनां समीपे क्रियन्ते इति उपसर्गाः। अर्थात् जो धातु के पास रखे जाते हैं, उन्हें उपसर्ग कहते हैं। (उप + सर्ग) 'उप' का अर्थ है- समीप, निकट या पास तथा 'सर्ग' का अर्थ है- सृष्टि करना।

दूसरे शब्दों में, 'उपसर्ग' उस शब्दांश या अव्यय को कहा जाता है, जो किसी शब्द के पहले जुड़कर उसके अर्थ में विशेषता उत्पन्न कर दे अथवा उसका अर्थ ही बदल है। जैसे अभि +यान = अभियान।

उपसर्गेण धात्वर्थो बलादन्यत्र नीयते । प्रहाराहार-संहार विहार परिहार वत् ।।

(उपसर्ग की शक्ति के प्रयोग से धातुओं का अर्थ बदल जाता है ।)

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उपसर्ग की विशेषताएं

उपसर्ग की तीन गतियाँ (*उपसर्गों के विशेषताओं को व्याकरण की भाषा में गति कहा जाता है) या विशेषताएँ हैं 

(i) शब्द के अर्थ में एक नई विशेषता लाना।

(ii) शब्द के अर्थ में प्रतिकूलता उत्पन्न करना । 

(iii) शब्द के अर्थ में कोई खास परिवर्तन नहीं लाना । 


हिंदी में उपसर्गों की संख्या

हिन्दी में तीन प्रकार के उपसर्ग प्रयुक्त होते हैं। 

वही संस्कृत, हिन्दी और उर्दू भाषा के उपसर्गों की बात करें तो,  संस्कृत के उपसगों की संख्या-22, जिसमें की हिन्दी के 10 और उर्दू को-12 उपसर्ग शामिल है जिसको मिलाकर संस्कृत में कुल 22 उपसर्ग होते हैं।


संस्कृत में उपसर्ग

 उपसर्ग किसे कहते हैं से भी ज्यादा महत्वपूर्ण उपसर्गों की सूची को जानना होता है, सबसे पहले हम संस्कृत के उपसर्ग की बात करें तो, संस्कृत के 22 उपसर्ग हैं जो अधोलिखित हैं :-

1. प्र= अधिक, उत्कर्ष, गति, यश, उत्पत्ति आगे के अर्थ में जैसे प्रबल प्रताप, प्रक्रिया आदि।

2. परा = उलटा, पीछे, अनादर, नाश आदि का बोधक है। जैसे- पराजय, पराभव, पराक्रम आदि।

3. अप = लघुता, हीनता, दूर ले जाना आदि का बोधक है। जैसे- अपमान, अपयश, अपकार आदि ।

4. सम् = अच्छा पूर्ण साथ आदि का बोधक है। जैसे संगम, संवाद, संतोष आदि।

5. अनु = पीछे, निम्न, समान, क्रम आदि का बोधक है। जैसे- अनुशासन, अनुवाद, अनुभव आदि ।

6. अव = अनादर, हीनता, पतन, विशेषता आदि के अर्थों में जैसे- अवकाश, अवनत अवतार आदि ।

7. निस्=  यह रहित, पूरा, विपरीत आदि का बोधक है। जैसे निस्तार, निस्सार, निस्तेज आदि।

8. निर्= बिना, बाहर निषेध आदि के अर्थ में। जैसे- निरपराध, निर्जन, निराकार आदि ।

9. दुस्= बुरा, कठिन आदि का बोधक है। जैसे दुश्शासन, दुष्कर, दुस्साहस आदि। 

10. दुर = कठिनता, दुष्टता, निंदा, हीनता का बोधक। जैसे- दुर्गम, दुर्जन, दुराचार आदि ।

11. वि= भिन्नता, हीनता, असमानता और विशेषता का बोधक है। जैसे वियोग, विवरण, विदेश, विहार इत्यादि ।

12. आङ (आ)=  तक, समेत उलटा आदि का बोधक है। जैसे- आकण्ठ, आगमन, आरोहण आदि।

13. नि = निषेध, निश्चित और अधिकता का प्रतीक है। जैसे- निवारण, निपात, नियोजन इत्यादि ।

14. अघि = ऊपर, श्रेष्ठ, समीपता, उपरिभाव आदि का बोधक है। जैसे- अधिकार, अधिपति, अध्यात्म आदि।

15. अति = अधिक, ऊपर, उस पार आदि का बोधक है। जैसे- अतिकाल, अतिरिक्त, अतिक्रमण, अतिव्याप्ति आदि।

16. सु = उत्तमता, सुगमता और श्रेष्ठता का बोधक है। जैसे- सुयोग्य, सुगम, सुजन आदि।

17. उत्-उद् = ऊँचा, श्रेष्ठ, ऊपर आदि का बोधक है। जैसे उत्तम, उत्कर्ष, उद्गार, उत्पत्ति इत्यादि ।

18.अभि = सामने, पास, अच्छा, चारों ओर आदि का प्रतीक है। जैसे- अभिमुख, अभ्यागत, अभिप्राय इत्यादि ।

19. प्रति = विरोध, बराबरी, प्रत्येक परिवर्तन आदि का बोधक जैसे- प्रतिध्वनि, प्रतिकार, प्रतिदान, प्रत्यक्ष, प्रतिकूल आदि। 

20 . परि= आस-पास, सब तरफ (चारों ओर), पूर्णता आदि के लिए। जैसे =परिक्रमा परिजन, परिणाम आदि।

21. उप = निकट, सदृश, गौण, सहायता, लघुता आदि का बोधक है। जैसे- उपवन, उपकूल, उपकार, उपहार इत्यादि। 

संस्कृत में उपसर्ग के उदाहरण

कुछ महत्वपूर्ण उपसर्गों के बारे में जानने के बाद, हम आपको नीचे कुछ धातुओं के साथ उपसर्गों के प्रयोग का चमत्कार दिखलाएंगे, जिसमें आपको पता चलेगा कि संस्कृत व्याकरण में उपसर्ग प्रकरण कितना भिन्न है। 

➲(गम्-गच्छ) (गच्छति जाता है)

आगच्छति = आता है ।

निर्गच्छति = निकलता है

उद्गच्छति = उड़ता है ।

अधिगच्छति= प्राप्त करता है। 

सङ्गच्छति = मिलता है

उपगच्छति = पास जाता है । 

अनुगच्छति पीछे-पीछे जाता है । 

अवगच्छति = समझता है । 

प्रत्यागच्छति= लौटता है ।


➲ भू (भवति = होता है)

अनुभवति = अनुभव करता है 

उद्भवति= उत्पन्न होता है ।

अभिभवति = तिरस्कार करता है । 

परिभवति= हराता हैं


➲ सृ (सरति जाता है)

अपसरति = दूर हटता है ।

उपसरति = पास जाता है ।

अनुसरति = पीछे-पीछे जाता है । 

प्रसरति = फैलता है ।

अभिसरति = सेवा करता है, चुपके से जाता है ।  

निस्सरति = बाहर निकलता है। 


➲ कृ (कर) (करोति करता है)

अनुकरोति = नकल करता है।

अपकरोति = बुराई करता है ।

विकरोति = दूषित करता है ।

अधिकरोति = अधिकार करता है ।

अपाकरोति = दूर करता है।

उपकरोति = उपकार करता है।

व्याकरोति = व्याख्या करता है ।


➲ रुहू ( (रोहति - चढ़ता है )

अधिरोहति = चढ़ता है।

अवरोहति = उतरता है ।

आरोहति = सवारी पर चढ़ता है।


➲ लप् (लपति बोलता है)

विलपति = विलाप करता है ।

अपलपति = इनकार करता है 

प्रलपति = प्रलाप करता है ।

आलपति = बात करता है ।


➲ ह (हर्) (हरति= छीनता है)

प्रहरति = प्रहार करता है ।

उद्धरति = उद्धार करता है ।

विहरति = घूमता है, सैर करता है ।

उपहरति = भेंट चढ़ाता है

अनुहरति = नकल करता है ।

आहरति = लाता है ।

परिहरति = दूर करता है । 

संहरति = संहार करता है


➲ नी (नयति = ले जाता है)

अनुनयति = खुशामद करता है; प्रार्थना करता है । 

आनयति * = लाता है ।

विनयति = झुकता है 

परिणयति = शादी करता है ।

विनयते = क्रोध शान्त करता है ।

निर्णयति = निर्णय करता है ।

अभिनयति = अभिनय करता है । 

उपनयति = यज्ञोपवीत देता है ।


➲ सद् (सीदति दुःखी होता है)

प्रसीदति = प्रसन्न होता है ।

प्रसादयति= खुश करता है ।

निषीदति = बैठता है।

आसादयति = प्राप्त करता है ।

निषीदति = दुःखी होता है । 

उत्सादयति = नष्ट करता है ।


➲ चर् (चरति = चरता है)

आचरति = आचरण करता है

परिचरति = सेवा करता है ।

उच्चरति = बोलता है ।

अनुचरति = पीछे-पीछे चलता है

विचरति = घूमता है ।

उपचरति = सेवा करता है

हिन्दी के प्रमुख उपसर्ग और बोधक

हालाँकि संस्कृत में उपसर्गों की संख्याएँ सिमित है परन्तु हिंदी व्याकरण में ऐसा बिलकुल नहीं है , हिंदी व्याकरण में बहुत सारे उपसर्ग हैं।

परन्तु कुछः उपसर्ग ऐसे हैं जिनका उपयोग बहुत ज्यादा होता है, जिनकी सूचि मैंने आपको निचे दी है ताकि आप उनको अच्छे से जान और समझ सकें। 

अ, अन = अभाव, निषेध आदि के अर्थ में जैसे अछूता, अचेत, अनमोल, अनपढ़ इत्यादि ।

क, कु = बुराई और नीचता के सूचक हैं। जैसे- कुचाल, कुठौर, कपूत आदि।

अघ =  'आधा' का सूचक है। जैसे- अधपका, अधमरा, अधकचरा आदि ।

औ (अब) = हीनता, अनादर, निषेध, आदि का बोधक है। जैसे- अवगुण, औघट, औढर, आदि। 

नि = निषेध, अभाव आदि का सूचक है। जैसे- निडर, निकम्मा, निहत्था, निठुर  इत्यादि। 

भर = यह पूर्णता का सूचक है। जैसे- भरपेट, भरपूर, भरसक, भरदिन आदि ।

सु =  (स) उत्तमता, साथ आदि का सूचक है। जैसे- सुडौल, सुजान, सपूत, सुघड़, सरस इत्यादि।

उन =एक कम का बोधक। जैसे- उनचास, उनतीस, उनासी आदि ।

दु =कम, बुरा आदि का बोधक हैं। जैसे- दुबला आदि। 

बिन =अभाव का प्रतीक । जैसे- बिनदेखा आदि।


उर्दू (अरबी, फारसी) के उपसर्ग

हिंदी और संस्कृत व्याकरण के उपसर्गों को जाने के बाद अब हम आपको उर्दू अथवा अरबी  या फारसी के कुछ उपसर्ग के बारे में बताएंगे, जिनका उपयोग हम हिंदी व्याकरण में भी काफी करते हैं। 

कम = अल्प, हीन आदि का बोधक। जैसे- कमजोर, कमसिन आदि ।

खुश = उत्तमता के अर्थ में । जैसे- खुशबू, खुशहाल, खुशखबरी आदि ।

गैर = निषेध और रहित का सूचक है। जैसे- गैरहाजिर, गैरकानूनी, गैरसरकारी आदि ।

दर = 'अन्दर' और 'में' अर्थ का बोधक है। जैसे दरअसल, दरहकीकत, दरकार आदि।

ना = 'अभाव' और 'रहित' का सूचक है। जैसे- नालायक, नापसंद, नादानं आदि। 

ब = ' अनुसार' का अर्थ देता है। जैसे- बनाम, बदौलत आदि।

बद = 'हीनता' का अर्थ देता है। जैसे- बदतमीज, बदबू आदि।

बर = बा 'पर' का अर्थ देता है। जैसे- बरवक्त, बरखास्त आदि। 

बा = 'से' का अर्थ देता है। जैसे- बाकायदा, बाकलम आदि।

बिला = 'बिना' के अर्थ में इसका प्रयोग होता है। जैसे- बिलाअक्ल, बिलारोक आदि। 

बे = 'अभाव' का अर्थ देता है। जैसे बेईमान बेवकूफ बेहोश आदि ।

ला = "अभाव', बिना आदि का बोधक है। जैसे- लाजवाब, लावारिस, लापरवाह आदि।

सर = ' श्रेष्ठ' का अर्थ देता है। जैसे- सरताज, सरपंच, सरनाम आदि।

हम = 'साथ' का अर्थ देता है। जैसे- हमदर्द, हमसफर, हमउम्र, हमराह, आदि। 

हर = 'प्रत्येक' का अर्थ है। जैसे- हररोज, हरघड़ी, हरदफा आदि।


उपसर्ग के उदाहरण

दो उपसर्गों के कुछ उदाहरण : जिसे हम उपसर्ग कहते हैं। तथा ऐसे शब्द है जिनमें दो उपसर्ग लगते हैं, वैसे कुछ प्रमुख शब्दों की सूची हमने नीचे दी है :-

नर् + आ + करण = निराकरण 

सु + सम् + कृत = सुसंस्कृत 

अन् + आ + हार - अनाहार

प्रति उप कार = प्रत्युपकार

सम् + आ चार = समाचार 

अ + सु + रक्षित = असुरक्षित

सम् + आ+ लोचना = समालोचना

अ + नि+ यन्त्रित = अनियन्त्रित

सु + सम् + गठित = सुसंगठित

अति + आ + चार = अत्याचार

अन् आ+ सक्ति =अनासक्ति 

अ + प्रति + अक्ष - अप्रत्यक्ष


उपसर्ग के कुछ महत्वपूर्ण नियम 

हमने जाना कि उपसर्ग किसे कहते हैं, विभिन्न भाषाओं के उपसर्ग ओं की सूची को भी हमने देखा परंतु उपसर्ग लगाने के कुछ महत्वपूर्ण नियम होते हैं, जिनको हमने नीचे वर्णित किया है : 

कुछ अव्यय, संज्ञापद, सर्वनाम, विशेषण भी उपसर्गवत् प्रयुक्त होते हैं। 

जैसे 

अ = अभाव, निषेध के अर्थ में जैसे अधर्म, अज्ञान, अनीति आदि।

अन् = अभाव या निषेधार्थक जैस- अनर्थ, अनंत, आदि। 

अंतर = भीतर के अर्थ में जैसे- अन्तर्नाद, अन्तर्राष्ट्रीय आदि। 

का, कु = 'बुरा' के अर्थ में। जैसे- कापुरुष, कुपुत्र आदि ।

चिर' = बहुत' के अर्थ में जैसे चिरकाल, चिरंजीव आदि।

न = 'अभाव' के अर्थ में। जैसे नगण्य, नपुंसक आदि । 

पुनर् ='फिर' के अभाव में । जैसे- पुनर्निर्माण, पुनरागमन आदि।

पुरा = 'पहले' के अर्थ में। जैसे- पुरातन, पुरातत्व आदि।

महिर, बहिस् = बाहर' के अर्थ में जैसे- बहिष्कार, बहिद्वार आदि। 

स = 'सहित' के अर्थ में। जैसे- सचेत, सजीव आदि।

सत् = 'अच्छा' अर्थ में । जैसे- सत्पात्र, सदाचार आदि। 

सह = 'साथ' के अर्थ में। जैसे- सहकारी, सहोदर आदि।

अलम् = " शोभा' तथा 'बेकार' के अर्थ में। जैसे- अलंकार, अलंकृत आदि। 

आविस् = प्रकट होना या बाहर होने के अर्थ में जैसे- आविर्भाव, आविष्कार आदि।

तिरस = तिरछा, टेढ़ा, अदृश्य होने के अर्थ में जैसे- तिरस्कार, तिरोभाव, आदि। 

पुरस् = सामने के अर्थ में जैसे- पुरस्कार आदि।

प्रादुर = प्रकट होना, सामने आता के अर्थ में जैसे- प्रादुर्भाव, प्रादुर्भूत आदि। 

साक्षात् = साक्षात्कार के अर्थ में। जैसे- साक्षात्कार आदि।


आखिरी ज्ञान की बातें 

दरअसल हिन्दी उपसर्ग प्रायः संस्कृत के ही विकृत रूप हैं। उपर्युक्त उपसर्गों के अलावे अंग्रेजी के कुछ उपसर्गों का प्रचलन मिलता है। 

जैसे- डबल, डिप्टी, फुल, सब, हाफ, हेड आदि। इन सभी बातों को जाने के बाद आशा है कि आपको उपसर्ग किसे कहते हैं से संबंधित कोई भी प्रश्न मन में शेष नहीं रह गया होगा।  

उपयुक्त विषय वस्तु पर अपने सुझाव एवं शिकायत की हम आदर पूर्वक सम्मान करते हैं। 

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