संस्कृत में अनुवाद कैसे करें - Sankrit Translation

संस्कृत में अनुवाद कैसे करें , संस्कृत में अनुवाद के कुछ नियम क्या हैं ? ऐसे बहुत सरे प्रश्न हैं जो आप आये दिनों खोजते रहते हैं। 

दरअसल आज भारत में कहें तो संस्कृत पढ़ना और सीखना यूँ ही कोई नहीं चाहता, परन्तु अगर ऐसा है तो यकीं मानिये यह हमारे लिए बहुत ही शर्मनाक बात है। 

संस्कृत की जननी होकर अगर यहाँ के लोग संस्कृत पढ़ने से ही इंकार कर रहे हैं तो यह तो कदापि अच्छी बात नहीं ही हो सकती , इसलिए हम आज आपको बताएँगे की आखिर किसी भी हिंदी वाक्य को संस्कृत में अनुवाद कैसे करें।  

संस्कृत अनुवाद सीखने से पहले छात्रों को हिन्दी के कारक चिह्नों से अवगत होना चाहिए। हिन्दी के कारक चिह्न निम्नलिखित हैं

कर्ता - ने

कर्म - को ।

अपादान - से (जुदाई) ।

सम्बन्ध - का, के, को, रा, रे, री ।

करण - से, द्वारा ।

अधिकरण - में, पै, पर ।

सम्प्रदान - को, के लिए।

सम्बोधन - हे, अरे, अहो, अजी, भो 

नोट- यह स्मरण रखना चाहिए कि उपर्युक्त विभक्तियाँ प्रत्येक जगह आवश्यक रूप से नहीं रहती हैं। 

कई जगह इनका लोप हो जाता है और कई जगह दूसरे कारक की विभक्तियाँ भी दूसरे कारक में लग जाती हैं। जैसे-राम जाता है। 

इस वाक्य में कर्त्ता की 'ने' विभक्ति नहीं है। आज रात को वर्षा होगी-में 'रात में' की जगह 'रात को' लगा है । तो आप बिना इन बातो को दिन में रखे हुए संस्कृत में अनुवाद नहीं कर सकते।

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वचन 

संस्कृत में तीन वचन हैं। एक के लिए एकवचन, दो के लिए द्विवचन और तीन या अधिक के लिए बहुवचन का प्रयोग होता है। किन्तु वचन के सम्बन्ध में निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए

१. जाति के अर्थ में एकवचन का प्रयोग होता है; जैसे-बाल: चंचलः भवति । अर्थात् बालक चंचल होते हैं ।

२. द्वयम्, युगलम्, त्रयम् आदि शब्दों का प्रयोग एकवचन में होता है। जैसे-करद्वयम्, मुनित्रयम्, वर्षचतुष्टयम् इत्यादि

३. आस्पद, पद, प्रमाण, भाजन, स्थान, पात्र आदि शब्द जब विधेय के रूप में आते हैं तब सदा क्लीवलिंग एकवचन में रहते हैं। जैसे-गुणाः पूजास्थानम्, वेदाः प्रमाणम् इत्यादि ।

४. समुदायवाचक शब्द-गण, समूह, कुल, ग्राम समुदाय आदि एकवचन में रहते हैं फिर भी बहुवचन का भाव व्यक्त करते हैं। जैसे-देवगणः, विप्रसमूह, राक्षसकुलः, दनुज समुदायः आदि । 

५. प्रदेशों के नाम प्रायः बहुवचन में आते हैं। जैसे-काश्मीरेषु, कलिंगेषु, बंगेषु इत्यादि। 

६. कति (कितने) यति (जितने), तति (उतने) शब्द बहुवचन में आते हैं, जैसे- कति बालका:, यति छात्र तति अध्यापिका: आदि ।

७. नेत्र, श्रोत्र, हस्त, पाद अर्थवाले शब्द द्विवचन में रहते हैं। जैसे नेत्राभ्यां पश्यति, श्रोत्राभ्याम् श्रृंणोति आदि । 

८. दार, अक्षत, प्राण, माला आदि शब्द सदा पुल्लिंग बहुवचन में रहते हैं। जैसे-दारान् रक्षेत्ध नैरपियोऽपि प्रियतरः, अक्षताश्च सुरश्रेष्ठाः, कुंकुममाला: सुशोभिताः 

९. (बालू), समा (वर्ष), अप (जल), वर्षा आदि शब्द स्त्रीलिंग बहुवचन में आते हैं। जैसे-मिकतासु, वर्षासु ।

१०. त्रयः से लेकर अष्टादश तक के सभी संख्यावाचक शब्द बहुवचन में आते हैं । इनका लिंग, वचन आदि अपने विशेष्य के अनुसार होता है। 

किन्तु एकोनविंशति से लेकर शत तक तथा सहरव शब्द विशेषण के रूप में सदा एकवचन में ही आते है। इनका अपना ही लिंग रहता है। और इस तरह से संख्यावाचक शब्दों का संस्कृत में अनुवाद करने में बहुत महत्त्व है। 

विशेष्य के अनुसार नहीं बदलता जैसे विशेषण के रूप में नवतिः पुरुषाः, विंशतिः, स्त्रियाः, नवतिः, फलानि, शतं पुस्तकानि आदि विशेष्य के रूप में पुस्तकानाम् शतम्, पुस्तकानां द्वे शते, पुस्तकानां चतुश्शतानि ।

टिप्पणी- संस्कृत-अनुवाद का शिक्षण आठ सोपानों में करना चाहिए। इससे छात्रों के संस्कृत-ज्ञान के विकास में सरलता होती है। यह पद्धति अत्यन्त वैज्ञानिक भी लगती है। ये आठों सोपान निम्नलिखित हैं ।

१. क्रिया प्रयोग

२. विभक्ति प्रयोग

३. काल-रचना

०४. अव्यय प्रयोग

५. विशेषण प्रयोग

६. प्रेरणार्थक क्रिया प्रयोग

७. वाच्य-रचना

८. विभक्तियों (कारकों) के विशेष प्रयोग

कुछ उदाहरण देखें

रामः गच्छति-राम जाता है

त्वम् धावसि तुम दौड़ते हो । 

वयम् लिखामः-हमलोग लिखते हैं। 

सीता खेलति-सीता खेलती है

बालकाः भ्रमन्ति-लड़के घूमते हैं ।

ते खेलन्ति-वे खेलते हैं

युवाम् लिखथः तुम दोनों लिखते हो ।

बालका: पठन्ति लड़के पढ़ते हैं 

अहम् धावामि- मैं दौड़ता हूँ

आवाम् पठाव:- हम दोनों पढ़ते हैं।

गोविन्दः भ्रमति- गोविन्द घूमता है।

सा लिखति-वह लिखती है 

तौ धावत: वे दोनों दौड़ते हैं।

संस्कृत अनुवाद में विभक्ति प्रयोग 

कुछ उदाहरण देखें

    • कर्ता - प्रथमा
      • राम: गच्छति राम जाता है ।
      • त्वम् गच्छसि तुम जाते हो ।
      • अहम् पठामि मैं पढ़ता हूँ ।

    • कर्म - द्वितीया
      • मोहनः त्वाम् पश्यति - मोहन तुमको देखता है । 
      • त्वम् अस्मान् पश्यसि - तुम हमलोगों को देखते हो । 
      • अहं मोहनं पश्यामि - मैं मोहन को देखता हूँ ।

    • करण तृतीया 
      • सः दण्डेन ताडयति-वह डण्डे से पीटता है । 
      • अहम् वायुयानेन गच्छामि मैं वायुयान से जाता हूँ । -मैं 
      • बालका: लेखन्या लिखन्ति लड़के लेखनी से लिखते हैं ।

    • सम्प्रदान - चतुर्थी 
      • सः मोहनाय गच्छति वह मोहन के लिए जाता हैं 
      • त्वम् सीतायै पठसि - तुम सीता के लिए पढ़ते हो । 
      • सा ब्राह्मणेभ्य: पचति- वह ब्राह्मणों के लिए खाना पकाती है 

    • आपदान - पञ्चमी 
      • स: ग्रामात् आगच्छति वह गाँव से आता है 
      • वयम् विद्यालयात् आगच्छामः-हम विद्यालय से आते हैं। 
      • पक्षिण: आकाशात् पतन्ति पक्षी आकाश से गिरते हैं । 
      • वृक्षात् पत्राणि पतन्ति वृक्ष से पत्ते गिरते हैं । 

    • सम्बन्ध - षष्ठी 
      • रामस्य पुत्रः गच्छति- राम का पुत्र जाता है । 
      • वृक्षस्य पत्राणि पश्यति वृक्ष के पत्तों को देखता है। 
      • मम पुत्रः पठति- मेरा पुत्र पढ़ता है ।

    • अधिकरण - सप्तमी
      • सः विद्यालये पठति वह विद्यालय में पढ़ता है । 
      • नद्याः तटे वसन्ति मुनयः नदी के तट पर मुनि रहते हैं । 
      • आकाशे मेघाः सन्ति आकाश में मेघ है ।

    • सम्बोधन - प्रथमा  
      • हे राम ! अत्र आगच्छ - हे राम ! यहाँ आओ ।
      • हे कृष्ण ! अत्र गौशाचरति - हे कृष्ण ! यहां गाय चरती है। 

संस्कृत में अनुवाद के प्रमुख नियम |

संस्कृतानुवाद के लिए नीचे लिखे १४ नियमों का अच्छी तरह मनन तथा अभ्यास कर के आप संस्कृत में अनुवाद के लिए तैयार हो सकते हैं।  

१. संस्कृत में परोक्ष कथन नहीं होता है। अतः अंग्रेजी के परोक्ष कथन को भी प्रत्यक्ष कर करने के बाद संस्कृत का अनुवाद करना चाहिए । 

जैसे- राम ने सीता से कहा, मैं घर जाऊँगा–रामः सीताम् अवदत् 'अहं गृहं गमिष्यामि' ।

२. दो या दो से अधिक विशेष्य पद यदि 'और' द्वारा जुड़े हों तो संस्कृत में क्रिया द्विवचन या बहुवचन में होती है। 

जैसे -ब्राह्मण और राजपुत्र घर गये - ब्राह्मण: राजपुत्रश्च गृहं जग्मतुः । मोहन, सोहन और कृष्ण ने एक शेर मारा-मोहनः सोहन: कृष्णश्च एक सिंहम् हृतवन्तः । 

३. विशेष्य-पद वाक्य में एक से अधिक हों और सभी स्वतन्त्र में प्रयुक्त हुए हों तो किया एकवचन में होती है। 

जैसे- (क) पटुत्वम् सत्यवादित्वम् कथायोगेन बुध्यते । (ख) शुष्ककाष्ठञ्च मूर्खश्च भिद्यते न च नम्यते ।

* कभी-कभी एकाधिक कर्त्ता होने पर किया अपने निकटस्थ कर्त्ता के अनुसार हो जाती है। जैसे- अहश्य रात्रिश्च उभे च सन्ध्ये धर्मश्च जानाति नरस्य वृत्तम् ।

५. (क) यदि किसी वाक्य में तीनों पुरुषों में कर्त्ता विद्यमान हो तो क्रिया उत्तम पुरुष के अनुसार कर दी जाती है। 

जैसे-रमेशश्च त्वम् च अहं च पठामः । यहाँ क्रिया 'पठामः' उत्तम पुरुष के अनुसार है किन्तु बहुवचन के द्वारा शेष कर्त्ताओं का भी अस्तित्व सूचित कर दिया गया है। 

(ख) यदि वाक्य में केवल प्रथम और मध्यम पुरुषों के कर्त्ता हो तो क्रिया मध्यम पुरुष के अनुसार रहती है। 

जैसे-हरिश्च त्वम् च धावथः ।

(ग) यदि वाक्य में मध्यम और उत्तम पुरुष के कर्त्ता हों तो क्रिया उत्तम पुरुष के अनुसार होगी। 

जैसे-त्वम् च अहं च पठावः । 

६. यदि वाक्यों में कई कर्त्ता हो 'वा' 'या' किंवा के द्वारा विच्छिन्न हों तो किया अपने निकटस्थ कर्त्ता के अनुसार होती है। 

जैसे-सीता त्वं वा तत्र गमिष्यसि । न सा न वा वयम् तत्र तुम् शक्नुमः । 

७. उद्देश्य और विधेय में व्यपेक्षा या आपेक्ष सम्बन्ध न रहने पर क्रिया सदा उद्देश्य के अनुसार रहती है। 

जैसे-सुवर्णम् कुण्डलानि भवति पञ्च वृक्षाः नौका भवति। यहाँ प्रथम वाक्य में सुवर्णम् तथा द्वितीय वाक्य में वृक्षाः प्रकृत रूप में हैं। इसकी विकृति अर्थात् इनसे बनी चीजें हैं 'कुण्डलानि-' और 'नौका' दोनों वाक्यों में क्रिया उद्देश्य के अनुसार हैं।

८. वाक्य में विधेय का लिंग, वचन, विभक्ति उद्देश्य के अनुसार होती है। 

जैसे-राम स्वस्थ है-रामः स्वस्थ अस्ति ।

यह लड़की दुर्बल है- षा बालिका दुर्बला अस्ति ।

हमलोग अनुत्तीर्ण हैं- वयम् अनुत्तीर्णाः स्मः ।

मोहन मेरा पुत्र है- मोहनः मम पुत्रः अस्ति ।

सीता अध्यापक है- सीता अध्यापिका अस्ति

वे गुणज्ञ हैं- ते गुणज्ञाः सन्ति ।

९. उद्देश्य और विधेय यदि परस्पर निरपेक्ष हों तो विधेय का प्रयोग स्वतन्त्र रूप में होता है।

 जैसे-अहिंसा परमो धर्मः । यहाँ उद्देश्य 'अहिंसा' पद स्त्रीलिंग है किन्तु इसका विधेय 'धर्म' पुल्लिंग है। इसी प्रकार अन्यत्र भी होता है। 

दुर्बलस्य बलं हरिः विद्यारूपम् कुरुपाणाम्। शक्तानां भूषणं क्षमा । स हि वेदः परं ज्योतिः। भरणं प्रकृतिः शरीरिणाम् उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् । दरिद्राः ते कृपापात्रम् ।

१०. उद्देश्य और विधेय परस्पर निरपेक्ष हों और दो वाक्य खण्डों में हों तो उनका संयोजक 'यत्' और 'तद्' शब्द भी अपने-अपने विशेष्य के अनुसार भिन्न-भिन्न होते हैं। 

जैसे-चिररुग्णस्य यत् मरणम् सः तस्य विश्रामः । यहाँ 'यत्' मरणम्' का विशेषण है और 'सः' विश्रामः का विशेषण है। मरणम् उद्देश्य है और विश्राम विधेय है जो उद्देश्य से निरपेक्ष होने से स्वतन्त्र है। इसी प्रकार, अग्नेय दाहिका शक्तिः स तस्य स्वभावः शत्यम् हिमवत् सा प्रकृति जलस्य ।

११. अंग्रेजी से संस्कृत में अनुवाद बनाने के लिए पहले अंग्रेजी का हिन्दी में अनुवाद कर लेना चाहिए तब संस्कृत में अनुवाद करना चाहिए।

१२. प्रायः हिन्दी के कर्म कारक और क्रिया दोनों के लिए संस्कृत में केवल क्रिया रहती है। यही बात अंग्रेजी में भी है। अतः ऐसी स्थिति में हिन्दी का सम्बन्धकारक, संस्कृत में कर्मकारक कहा जाता है । 

जैसे-ईश्वर भक्तों की रक्षा करता है-ईश्वर: भक्तान् रक्षति यहाँ 'भक्तों की' सम्बन्धकारक में है किन्तु 'रक्षा' और 'करता है' दोनों के लिए ‘रक्षति क्रिया के आ जाने से सम्बन्धकारक में द्वितीया विभक्ति हुई ।

१३. भूतकाल में अनुवाद बनाने के लिए यदि क्रिया के भूतकाल का रूप न याद हो तो लट् लकार की क्रिया में 'स्म' लगा देना चाहिए। 

जैसे वह जाता था-सः गच्छति स्म। 'क्त' और 'क्तवत्' प्रत्ययों को लगाकर भी भूतकाल का वाक्य बनाया जाता है ।

१४. यदि लड़के 'अस्' 'कृ' और 'शक्' क्रिया का भी रूप याद कर लें तो हर तरह का कामचलाऊ अनुवाद बना सकते हैं। इसके लिए सीधा तरीका यह है क्रिया में 'अन्' जोड़कर उसे संज्ञा बना लें और उसे कर्म कारक का रूप दे दें। 

जैसे-वे लिखते हैं-ते लेखनम् कुर्वन्ति । तुम हँसते हो त्वम् हसनम् करोषि । वह खरीदता है-सः क्रयणम् करोति। मैं खेलता हूँ-अहं खेलनम् करोमि

संस्कृत में अनुवाद के वाच्य सम्बंधित नियम 

1. कर्तृवाच्य

(क) कर्त्ता में प्रथमा, (ख) कर्म में द्वितीया, (ग) क्रिया कर्त्ता के अनुसार । 

जैसे- रामः सीतां पश्यति । त्वम् मां पश्यसि अहं सीतां पश्यामि वयम् बालकान् पश्यामः ।

2. कर्मवाच्य

(क) कर्म में प्रथमा, (ख) कर्त्ता में तृतीया, मूलक्रिया में 'य' (यक् प्रत्यय), लगाकर आत्मनेपदी बनाकर कर्म के अनुसार रखा जाता है। 

जैसे-ऊपर के उदाहरणों में रामेण सीता दृश्यते । त्वया सीता दृश्यते । मया सीता दृश्यते । अस्माभिः बालकाः दृश्यन्ते ।

3. भाववाच्य

(क) कर्त्ता में तृतीया । (ख) मूलक्रिया में 'यक्' प्रत्यय लगाकर सदा प्रथम पुरुष एकवचन रखते हैं। इसमें क्रिया सदा अकर्मक रहती है। 

जैसे- कर्तृवाच्य-अहम् हसामि ।

भाववाच्य-मया हस्यते (हस् + य + ते = हस्यते)


कर्तृवाच्य-सः दुर्बलः अस्ति ।

भाववाच्य- तेन दुर्बलेन भूयते (भू + य ते भूयते) 


कर्त्तृवाच्य- ते दुर्बलाः सन्ति ।

भाववाच्य तैः दुर्बलै भूयते । 


कर्त्तृवाच्य-अन् स्वस्प: आसम् ।

भाववाच्य- मया स्वस्थेन अभूयत ।


कर्त्तृवाच्य- त्वम् सुन्दरः असि । 

भाववाच्य - त्वया सुन्दरेण भूयते ।


कर्तवाच्य- ते अत्र तिष्ठन्ति । 

भाववाच्य-तैः अत्र स्थीयते ।


निषेधवाचक क्रियाओं से भाववाच्य अच्छा होता है। जैसे-सः अतीव दुर्बलः अस्ति तेन अतीव दुर्बलेन भूयते । त्वया हसितुं न शक्यते ।


संस्कृत में अनुवाद के कुछ उदाहरण

उदाहरण-१

१. अयोध्या के राजा दशरथ थे = दशरथः अयोध्यायाः नृपः आसीत् ।

२. राम का विवाह सीता के साथ हुआ = रामस्य विवाह: सीतया सह अभवत् ।

३. पटना के किनारे गंगा नदी बहती है = पाटलिपुत्रस्य उपान्ते गंगा नदी वहति ।

४. गंगा हिमालय पर्वत से निकलती है= गंगा हिमालयात् पर्वतात् निःसरति ।

५. नदियों में गंगा श्रेष्ठ है = नदीषु गंगा श्रेष्ठा वर्तते ।

६.पटना मगध की राजधानी था = पाटलिपुत्रं मगधस्य राजधानी आसीत् ।

७. क्या तुमलोग पटना का गोलघर देखने जाओगे = कि यूयं पाटलिपुत्रस्य गोलगृह द्रष्टुम् गमिष्यथ ?

८. दरिद्रों को वस्त्र दो = दरिद्रेभ्यः वस्त्राणि देहि । 

९ मुझे लद्दू अच्छा लगता है = माम् मोदक रोचते ।


उदाहरण-२

१. हमलोगों को देखकर वह प्रसन्न है- अस्मान् दृष्ट्वा सः प्रसन्नः अस्ति ।

२. बंगलादेश से आकर उसने एक गाय खरीदी बंगदेशादागत्य सः एकां गाम् अक्रीणात् ।

३. चोरों को पकड़कर राजपुरूषों ने खूब पीटा = चौरान प्रगृह्य राजपुरुषाः भृशम् अताडयन्

 ४. आचार्य को प्रणाम करके छात्र पढ़ते हैं = आचार्यपादान् प्रणम्य छात्राः पठन्ति ।।

५. शंकर की पूजा करके भक्त आते हैं = शंकरं परिपूज्य भक्ताः आगच्छन्ति ।

६ जो विद्यान् होते हैं दूसरों का अपमान नहीं करते हैं = ये विद्वांसः भवन्ति, न हि ते अन्यान्  अपमानन्ति ।

७. राजा को प्रजा के कल्याण के लिए सदा चेष्टा करनी चाहिए = राजा प्रजानां हिताय सदा यतनीयम्

८. प्रातः काल टहलने के लिए तीन विद्यार्थी बाहर गये = प्रातः भ्रमितुं त्रयः छात्राः बहिरगच्छन् ।

९. विद्यालय के चारों ओर बगीचा है = विद्यालय परितः, उद्यानानि सन्ति ।

१०. भारत एक विशाल देश है भारतम् एकः विशाल देशः अस्ति ।


उदाहरण-३

१. भारतवर्ष बहुत बड़ा देश है = भारतवर्षम् अति विशाल देशः अस्ति ।

२. गंगा हमारे देश की पवित्र नदी है = अस्माकम् देशस्य गंगा पवित्रतमा सरिता अस्ति । 

३. संस्कृत देवताओं की भाषा है = संस्कृतं देवानां भाषा अस्ति ।

४. जयप्रकाश नारायण एक महान् पुरुष थे = जयप्रकाश नारायणः एकः महान् पुरुषः आसीत् ।

५ मोहन बाघ से डरता है = मोहन: व्याघ्रात् बिभेति ।

६. तीन बालिकाएं पढ़ती हैं = तिस्रः बालिका: पठन्ति ।

७. कर्म से सफलता मिलती है = कर्मणा सफलता मिलति ।

८. आलस्य छोड़कर काम करो = आलस्यं त्यक्त्वा कार्यं कुरु


उदाहरण-४

१. कल रात हवा बह रही थी = ह्यः निशायां पवनः वाति स्म ।

२. मैं कमरे में था = अहं कक्षे आसम् ।

३. किताब पढ़ते हुए मैंने देखा = पठन्तम् पुस्तकम् अहं अपश्यम् ।

४. खिड़की से एक चिड़िया आयी = गवाक्षेण एकः खगः आगच्छत् ।

५. कमरे में आकर वह गिर पड़ी = प्रकोष्ठे आगत्य सा अपतत्

६. मैंने उसे उठाकर टेबुल पर रखा =  अहं तं उत्थाय काष्ठफलकोपरि अस्थापयम् ।

८. उसने पानी पी लिया = स जल अपिबत्

९. फिर उसने उड़ने की कोशिश की= पुनः स उत्पतितुं यत्नं कृतवान् ।

१०. इतने में पानी पड़ने लगा = एतस्मिन् काले जलमवर्षत्

 ७. उसके सामने बर्तन में पानी रख दिया =  तस्य समक्षे पात्रे जलं निक्षिप्तवान्

११. मैंने खिड़की बन्द कर दी = अहं गवाक्षं पिहितवान् ।


उदाहरण-५

१. कवियों में कालिदास मुकुट मणि हैं = कविषु कालिदासः मुकुटमणिः अस्ति

२. शाकुन्तलम् इनकी सबसे अच्छी रचना है = अस्य शाकुन्तलम् सर्वश्रेष्ठा रचना अस्ति

३. सुदर्शन नाम का एक राजा दिल्ली का था = सुदर्शन नाम्ना एकः राजा देहल्यामासीत् । 

४. अब हमलोग आज घर चलेंगे= सम्प्रति वयमद्य गृहं गमिष्यामः ।

५. संस्कृत भाषा बड़ी मधुर एवं पुरानी है = संस्कृत भाषा अति मधुरा 

६. तुम लोग कल घर क्यों जाओगे = यूयम् श्वः कथं गृहं गमिष्यथ ?

७. वह धोबी को कपड़े देता है = सः रजक वस्त्राणि ददाति 

८. संतोष के समक्ष कोई सुख नहीं है= नहि संतोषात् समं सुखम्

९. छात्रों को अपना पाठ मन से पढ़ना चाहिए = छात्राः स्वं पाठं मनसा पठेयुः ।

१०. जो पढ़ता है वही सफल होता है = यः पठति स एव सफलः भवति

११. परिश्रम के बिना विद्या नहीं आती हैं परिश्रमेण विना विद्या नायाति ।

१२. तुम लोग पढ़कर जीवन में क्या करोगे यूयं पठित्वा जीवने किं करिष्यथ ?


उदाहरण-६

१. सभी मनुष्यों का आभूषण विद्या ही है = सर्वेषां मनुष्याणां विद्यैव आभूषणं अस्ति ।

२. मैंने दो महीने में संस्कृत पढ़ लिया =अहं द्वाभ्यां मासाभ्यां संस्कृतं अपठम् 

३. संस्कृत विश्वविद्यालय दरभंगा महाराज की देन है = संस्कृत विश्वविद्यालय: दरभंगा महाराज्ञः दानमस्ति (कृतिः अस्ति) । 

४. मेरी आज्ञा से छात्रों को इनाम हो = ममाज्ञया छात्रेभ्यः पारितोषिक देहि ।

५. तुम इस देश का महान् नेता हो जाओगे त्वं अस्य देशस्य महान् नेता भविष्यसि ।

६. सदाचार मनुष्यों को महत्ता देता है = सदाचार: मनुष्याणां महत्ता बर्धते ।

७. इन्दिरा गाँधी एक महान् नेता थी = इन्दिरा गाँधी एका महती नेत्री आसीत् । 

८. भारत के प्रत्येक नागरिक का विकास होना चाहिए = भारतस्य प्रत्येकस्य नागरिकस्य विकासः भवेत् ।

९. अखण्डता और एकता ही देश की ताकत होती है = अखण्डता एकता चैव देशस्य शक्ति भवति ।

१०. देशभक्ति सबसे बड़ी होती है = देशभक्ति: महत्तमा भवति ।

११. आएँ। हम सब मिलकर एकता का संकल्प लें = आगच्छेम। सर्वे मिलित्वा एकतायाः संकल्प कुर्याम। 

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