कारक किसे कहते हैं

 कारक किसे कहते हैं, कारक कितने प्रकार के होते हैं, विभक्ति और कारक में क्या संबंध है ? ऐसे ही बहुत सारे प्रश्नों का जवाब देने के लिए आज यह पोस्ट आपके लिए है। 

कारक हिंदी व्याकरण का एक महत्वपूर्ण अध्याय माना जाता है, जिसमें विभक्ति का भी बहुत ज्यादा महत्त्व है, इसलिए आज हम आपको कारक किसे कहते है और कारक और विभक्ति संबंधित सभी प्रश्नों का जवाब देंगे। 

इस पोस्ट को पढ़ने के बाद आप जान पाएंगे कारक किसे कहते हैं, कारक कितने प्रकार के होते हैं, और उनके सभी प्रकारों के परिभाषा तथा उदाहरण। 

छंद किसे कहते हैं 

कारक किसे कहते हैं को बेहतर जानने के लिए निम्नलिखित वाक्यों को पढ़िए :

  • मोहन ने सोहन को पीटा।

  • मोहन पेंसिल से पत्र लिखता है।

  • मोहन सोने के लिए घर गया ।

  • उसके पिता जी कमरे में थे।

  • मोहन पेड़ से फल तोड़ता है।

  • अरे मोहन तुम कह गए थे?

इन वाक्यों में ने, क़ो, से, के लिए, के, में, से तथा अरे शब्द रूप इस्तेमाल हुए है। 

यदि ध्यान से देखा जाए तो पता चलेगा कि ये शब्द रूप संज्ञा और सर्वनाम के साथ इस्तेमाल हुए हैं। 

आपने यह भी देखा कि संज्ञा अथवा सर्वनाम का कोई-न-काई सर्वच क्रिया के साथ होता है, जो इन शब्द-रूपों के द्वारा पता चलता है।

इन वाक्यों में मोहन ने, सोहन को, पेंसिल से, सोने के लिए, उसके, कमरे में, पेड़ से, अरे

मोहन शब्द-रूपों को पूरा करने और अर्थ स्पष्ट करने में सहायता कर रहे हैं। इन वाक्यों  में से संबंध बताने वाले शब्द-रूपों को यदि हटा दिया जाए तो इन वाक्यों का रूप कैसा होगा?
    • मोहन सोहन पीटा।
    • मोहन पेंसिल पत्र लिखता है।
    • मोहन सोने घर गया।
    • उसके पिता जी कमरे थे।
    • मोहन पेड़ फल तोड़ता है।
    • मोहन! तुम कहाँ गए थे?
इन शब्द-रूपों को हटाने से यह पता नहीं चलता कि संज्ञा अथवा सर्वनाम के क्रिया से संबंध क्या हैं? 

यह भी स्पष्ट नहीं हो रहा कि मोहन, सोहन, पेंसिल, सोने, कमरे आदि में कौन काम कर रहा है, कौन का संबंध किसमें किसको किस पर है, यह स्पष्ट नहीं हो रहा। 

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इसलिए इन शब्द-रूपों के प्रयोग से वाक्यों का अर्थ समझ में आ जाता है। इन शब्द-रूपों को कारक-चिह्न कहते हैं।

परसर्ग किसे कहते हैं-

हिंदी में इन कारक-चिह्नों को परसर्ग कहते हैं। इस प्रकार 'न', 'को', 'से', 'के लिए, 'का', 'पर', 'में', 'से', 'अरे', आदि परसर्ग अथवा कारक चिह्न हैं। 

इनसे वाक्य में प्रयुक्त संज्ञा और सर्वनाम का क्रिया से संबंध स्पष्ट होता है और पता चलता है कि हर संज्ञा या सर्वनाम किस प्रकार का काम कर रहा है।

कुछ वाक्यों में कुछ शब्दों के साथ परसर्ग का प्रयोग भी नहीं होता। जैसे- मोहन दूध पीता है' में 'मोहन' और 'दूध के बाद परसर्ग का प्रयोग नहीं हुआ। 

इस प्रकार 'मोहन ने दूध पिया' वाक्य में 'दूध' के बाद कोई परसर्ग नहीं लगा है। ऐसे वाक्यों में शब्द क्रम या अर्थ के आधार पर क्रिया से संज्ञा का संबंध स्पष्ट होता है।

वाक्य में प्रयुक्त संज्ञा या सर्वनाम का उस वाक्य की क्रिया से जो संबंध ज्ञात होता ।उसे कारक कहते  है।

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कारक के भेद 

हिंदी में आठ कारक हैं। कुछ विद्वान हिंदी में छ: कारक मानते हैं। वे संबंध और संबोधन को कारक की श्रेणी में नहीं मानते। यहाँ आठों कारकों की चर्चा की जा रही है।

कारक कारक - चिन्ह ( परसर्ग ) पहचान वाक्य प्रयोग
१. कर्त्ता कारक ( क्रिया को करने वाला ) शून्य (ने) कौन ? किसने ? मोहन चावल खाता है। मोहन ने चावल खाए।
२. कर्म कारक ( जिस पर क्रिया का फल पड़े ) शून्य, (को) क्या ? शीला खाना बनाती है। शीला ने चोर को पिटा।
३. करण कारक ( क्रिया करने का साधन ) से ( द्वारा, के द्वारा ) किसको ? शीला चाकू से फल काटती है। मोहन के द्वारा यह काम नहीं हुआ।
४. सम्प्र्दान कारक ( जिसके लिए क्रिया ) के लिए ( को, के निमित्त ) किससे, किसको, किसके निमित्त मां बच्चे के लिए दूध लाई। मोहन ने सोहन को किताब दी।
५. आपदान कारक ( जिससे अलग हो ) से किससे ? पेड़ से आम गिरा।
६. सम्बन्ध कारक का, के, की { रा, रे, री } (ना, ने, नी ) किसका ? किसके ? ( मैं + का ) रमेश का भाई डॉक्टर है। मेरे भाई ने यह किताब पढ़ी है। अपनी पुस्तक पढ़ो।
७. अधिकरण कारक में ( पर ) किसमें, किस पर मेरे विद्यालय में आज समारोह है। मेरी किताबें मेज पर पड़ी हैं। .
८. सम्बोधन कारक अरे ( हे ) -- अरे मोहन! यहाँ आओ। हे प्रभु! मेरी रक्षा करो।

यह ध्यान में रहे कि कर्ता कारक से अधिकरण कारक तक सभी कारकों में परसर्ग अथवा कारक-चिह्न शब्दों के अंत में लगाए जाते हैं, किंतु संबोधन कारक में अरे, अरी, हे आदि चिह्न शब्द से पहले लगाए जाते हैं।

कर्ता कारक किसे कहते हैं ?

पुलिस ने चोर को पकड़ा। इस वाक्य में किसने चोर को पकड़ा (पुलिस ने) यह स्पष्ट होता है कि पकड़ने की क्रिया का काम पुलिस करती है, इसलिए पुलिस ने कर्ता कारक है। 

कर्ता का अर्थ है करने वाला। इस प्रकार कर्ता कारक को पहचानने के लिए क्रिया में कौन' या 'किसने लगाया जाता है।

जैसे - मोहन सोता है

रमेश ने पत्र लिखा। वाक्यों की क्रियाओं में 'कौन सोता है' और 'किसने पत्र लिखा' लगाने पर 'मोहन' और 'रमेश उत्तर मिलते हैं। 

इसलिए ये दोनों कर्ता कारक हैं। कर्ता कारक में 'ने' कारक चिह्न अधिकतर भूतकाल में कर्म के होने पर लगता है। जैसे शीला ने आम खाया। -

जिस संज्ञा या सर्वनाम से क्रिया के करने वाले का बोध होता है, उसे कर्ता कारक कहते है। 

कर्म कारक किसे कहते हैं ?

1. मोहन चावल खाता है।

2. पुलिस ने चोर को पकड़ा।

इन दोनों वाक्यों को पढ़िए और बताइए  आपको कर्म कारक किसे कहते हैं यह पता चलता है ?

1. मोहन क्या खाता है? = चावल 

2. पुलिस ने किसको पकड़ा? = चोर को

यहाँ स्पष्ट होता है कि वाक्य (1) में किया (खाता) का फल चावल वस्तु पर पड़ा। वाक्य (2) में किया (पकड़ा) का फल चोर व्यक्ति पर पड़ा इसलिए चावल और चोर दोनों कर्म कारक हैं।

 वाक्य में जिस संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप पर क्रिया का फल पढ़ता है,उसे कर्म कारक कहते है। 

कर्म कारक का कारक चिह्न को है। 

कर्म कारक को पहचानने के लिए क्रिया के साथ क्या किसे, किसको लगाया जाता है, जैसे -

i) मोहन दूध पीता है।

ii) मोहन मुझे डराता है।

iii)माँ मोहन को डाँटती है।

इन वाक्यों में वाक्य (i) मोहन क्या पीता है?" वाक्य (ii) मोहन किसे डराता है?, वाक्य (iii) माँ किसको डाँटती है? उत्तर मिलता है, दूध, मुझे, मोहन को। 

इसलिए ये तीनों कर्म कारक है। ध्यान देने की बात है कि कर्म कारक में कहीं-कहीं को कारक-चिह्न नहीं लगता। 

यह प्रायः निर्जीव कर्म के साथ नहीं लगता। जैसे- मोहन दूध पीता है, मोहन ने कुर्सी तोड़ी।

यहाँ दूध और कुर्सी निर्जीव अथवा अप्राणिवाचक वस्तुएँ हैं। ये अप्राणिकारक कर्म हैं। इसलिए इनके साथ को कारक चिह्न या परसर्ग नहीं लगा। 

प्राणिवाचक कर्म के साथ 'को कारक चिह्न लगता है।

करण कारक किसे कहते हैं ?

मोहन चम्मच से खाना खाता है।

शीला साइकिल से स्कूल गई। 

राम ने रावण को बाण से मारा।

रामू के द्वारा भोजन भिजवा दो।

इन चारों वाक्यों को पढ़िए और बताइए -

  • मोहन किससे खाना खाता है। (चम्मच से) 
  • शीला किससे स्कूल जाती है। (साइकिल से)
  • भोजन किसके द्वारा भिजवाया जाए। 
  • राम ने रावण को किससे मारा। (बाण से) (राम द्वारा)

इन वाक्यों में चम्मच, साइकिल, बाण, रामू की सहायता से क्रमशः खाने, जाने, 'भारने, 'भिजवाने का काम होता है, इसलिए ये चारों करण कारक है।

कर्ता जिसकी सहायता से या साधन से क्रिया करता है, उसे करण कारक कहते है। 

करण कारक का कारक चिह्न से है, लेकिन के द्वारा या के साथ भी प्रयुक्त हो सकते हैं। 

करण कारक को पहचानने के लिए क्रिया किस साधन से, किस वस्तु की सहायता से  किसके द्वारा अथवा किसके साथ की जाती है, उसे लगाया जाता है। 

जैसे- मोहन ने चाकू से फल काटा। टेलीफोन के द्वारा पिताजी को यह सुचना देना, मोहन ने घटली में साथ समोसे खाए।

संप्रदान कारक किसे कहते है 

(1) वीर सैनिकों ने देश के लिए जान दी।

(11) मोहन पूजा के लिए फूल लाया।

इन वाक्यों को पढ़िए और बताइए

वीर सैनिकों ने किसके लिए जान दी। (देश के लिए) 

मोहन किसलिए फूल लाया (पूजा के लिए)

इन वाक्यों में देश और पूजा के लिए किया की गई है इसलिए ये दोनों संप्रदान कारक है।

 संप्रदान कारक को पहचानने के लिए क्रिया के साथ के लिए लगता है। उदाहरण के लिए माँ मेरे लिए बर्फी लाई वाक्य की क्रिया में किसके लिए बर्फी लाई लगाने से उत्तर मिलता है मेरे लिए अतः मेरे लिए संप्रदान कारक है और बर्फी कर्म कारक। 

संप्रदान कारक का मुख्य परसर्ग या कारक चिह्न के लिए है, किंतु कोई या किसी वस्तु को किसी व्यक्ति को दिया या लिया जाए वहाँ 'को' परसर्ग लगता है। 

उदाहरण के लिए, पिताजी मेरे लिए साइकिल लाए और पिता जी ने मुझे (मुझको) साइकिल दी।

यहाँ ध्यान देने की बात है कि को परसर्ग कर्म और संप्रदान दोनों कारकों में होता है,

जैसे- 1. पिता जी ने मोहन को बुलाया। 2. पिता जी ने मोहन की साइकिल दी। 

वाक्य (1) में को कर्म कारक का परसर्ग है और वाक्य (2) में को संप्रदान कारक का परसर्ग है। 

इसलिए कुछ विद्वान संप्रदान कारक को गौण कारक भी कहते हैं, क्योंकि वाक्य (2) में 'साइकिल' मुख्य कर्म है और मोहन को गौण कर्म है। इसे एक अन्य उदाहरण से स्पष्ट किया जाता है।

3. रमेश ने सुरेश को किताब दी। इस वाक्य में 'किताब' मुख्य कर्म और सुरेश गौण कर्म। यहाँ गौण कर्म संप्रदान कारक का काम कर रहा है। अतः को परसर्ग का प्रयोग हुआ है।

संज्ञा या सर्वनाम, जिस रूप के लिए कार्य करता है अथवा जिसको कुछ दिया जाता है. उसे  संप्रदान कारक कहते है।

अपादान कारक किसे कहते हैं 

गंगा हिमालय से निकलती है।

पेड़ से पत्ते गिरे।

 इन वाक्यों को पढ़िए और बताइए -

गंगा कहाँ से निकलती है? (हिमालय से), पत्ते कहां से गिरे? (पेड़ से)

इन वाक्यों में गंगा का हिमालय से निकलने, पत्तों का पेड़ से गिरने का अर्थात् गंगा और पत्तों का अपने स्रोत से अलग होने का भाव प्रकट होता है इसलिए हिमालय से और पेड़ से अपादान कारक है। 

अपादान कारक का परसर्ग से है। अपादान कारक पहचानने के लिए क्रिया में 'कहाँ से लगाया जाता है। 

जैसे- मोहन छत से गिरा वाक्य की क्रिया में 'कहाँ से गिरा का उत्तर मिलता है 'छत से। इसलिए 'छत से अपादान क्रिया है, क्योंकि इसमें मोहन के छत से अलग होने का भाव मिलता है।

यहाँ ध्यान देने की बात है कि से परसर्ग का प्रयोग करण तथा अपादान दोनों कारकों में होता है। 

करण कारक में से का प्रयोग साधन के रूप में या सहायता के रूप में या के द्वारा के रूप में होता है, किंतु अपादान कारक में से परसर्ग का प्रयोग अलग होने के लिए होता है।

उदाहरण के लिए उसने पेंसिल से निबंध लिखा, करण कारक है और उसने अलमारी से पेंसिल निकाली अपादान कारक है। 

पहले वाक्य में पेंसिल' उपकरण का काम कर रहा है, जबकि दूसरे वाक्य में पेंसिल अलमारी से अलग होने का काम कर रहा है। 

संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से एक का दूसरे से अलग होना पाया जाए, उसे अपादान कारक कहते है।

संबंध कारक किसे कहते है ?

यह मजदूर का घर है।

यह मेरी किताब है।

मोहन आपके बड़े भाई है। 

इन वाक्यों को पढ़िए और बताइए -

यह किसका घर है? (मजदूर का)

 किसकी किताब है? (मेरी)

मोहन किसके बड़े भाई है? (आपके) 

इन वाक्यों में मजदूर का घर से मेरी का किताब' से बड़े भाई का 'आप' से संबंध प्रकट होता है। 

इसलिए मजदूर का घर, मेरी किताब और आपके बड़े भाई संबंध कारक है।

संबंध कारक के परसर्ग का के, की रा. रे, री है। संबंध कारक पहचानने के लिए संज्ञा या सर्वनाम के साथ किसका किसकी या किसके लगाया जाता है। 

उदाहरण के लिए यह मोहन का घर है, वह आपका मित्र था. यह मेरी कलम है वाक्यों में किसका 'किसकी' आदि लगाने से मोहन का घर, आपका मित्र मेरी कलम उत्तर मिलता है।

ये तीनों संबंध कारक है रा रे री का प्रयोग मध्यम पुरुष के 'आप' और अन्य पुरुष के सिवाय उत्तम पुरुष में, हम और मध्यम पुरुष तू तुम सर्वनामों के साथ होता है, जैसे -मेरा, हमारा, तेरा, तुम्हारा।

संज्ञा सा सर्वनाम के जिस रूप से वाक्य में एक का दूसरे से संबंध होने का पता चले, उसे  संबंध कारक कहते है। 

कुछ विद्वान इसे कारक के अंतर्गत नहीं मानते।

अधिकरण कारक किसे कहते है 

मोहन कमरे में है।

किताब मेज पर रखी है।

मोहन कहाँ है? (कमरे में) 

किताब कहाँ रखी है? (मेज़ पर)

इन वाक्यों को पढ़ो और बताओ

इन वाक्यों में कमरे में और मेज़ पर से क्रिया के आधार की जानकारी मिलती है, इसलिए इन वाक्यों में कमरे में और मेज़ पर अधिकरण कारक हैं। 

संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप में क्रिया के स्थान अथवा आधार की जानकारी मिलती हो उसे अधिकरण कारक कहते है।

अधिकरण कारक के परसर्ग अथवा कारक चिहन में पर आदि हैं।

अधिकरण कारक को पहचानने के लिए क्रिया में 'कहाँ' या किसमें या किसपर लगाया जाता है। 

जैसे- 'चिड़िया पेड़ पर बैठी है। और मेरी किताबें अलमारी में पड़ी हैं।

संबोधन कारक किसे कहते हैं ?

अरे मोहन! इधर आओ।

हे प्रभु! मेरी रक्षा करो।

इन वाक्यों को आपने पढ़ा और देखा कि 'मोहन' के पहले 'अरे' शब्द और 'प्रभु' के पहले 'हे' शब्द का प्रयोग हुआ। 

ये शब्द किसी को पुकारने या याद करने के लिए इस्तेमाल होते हैं? जैसे - अरी शीला! क्या कर रही हो? ऐ लड़के! शोर मत करो। यहाँ 'अरी' और 'ऐ' संबोधन कारक हैं।

संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से किसी को पुकारने या याद करने या सचेत करने का पता चले, वह संबोधन कारक कहलाता है। 

यहाँ ध्यान देने की बात है कि संबोधन कारक में कारक-चिह्न या परसर्ग संज्ञा शब्द से पहले लगाए जाते हैं और उस परसर्ग के बाद संबोधन- चिह्न (!) भी लगाया जाता है। 

कुछ विद्वान इसे भी कारक की श्रेणी में नहीं रखते।

कारक और विभक्ति

कारक संबंध भाषा की संरचना का आधार है। एक शब्द के अर्थ का दूसरे शब्द के अर्थ के साथ संबंध होता है। 

यही अन्वय होता है। अर्थ के द्वारा ही शब्द का शब्द के साथ अन्वय माना जा सकता है। इसे ही कारक कहते हैं। 

वस्तुतः कारक उसे कहते हैं जो क्रिया सें संज्ञाओं के विभिन्नार्थी संबंधों को बताता है। कारक का संबंध अर्थ तत्व से है। शब्द के रूप तत्व से नहीं। 

वह प्रकृति, प्रत्यय या पद नहीं है। लेकिन जिस रूप से इस अन्वय की सूचना मिलती है, वह विभक्ति है। 

दूसरे शब्दों में, विभक्ति कारक बोध कराने वाला प्रत्यय है। 

विभक्ति वह रूप है जो शब्द या पद का अंश है। यह अर्थ का प्रकाशक है, अर्थ नहीं है। इसलिए कारक और विभक्ति एक नहीं, अलग अवधारणा है। 

कारक वाच्य है तो विभक्ति वाचक । संस्कृत में कारक छः माने गए हैं और विभक्ति सात। संस्कृत वैयाकरण षष्ठी विभक्ति को संबंध कारक नहीं मानते, क्योंकि इसका संबंध क्रिया से नहीं है। 

अतः उसे कारक नहीं मानते। षष्ठी का अर्थ संबंध से तो है, किंतु वह सबंध कई प्रकार का है, जैसे -

मोहन मेरा भाई है।

यह मोहन का घर है।

रामचरित मानस तुलसीदास का ग्रंथ है।

उपर्युक्त वाक्यों में षष्ठी से व्यक्त होने वाले संबंध अलग-अलग प्रकार के हैं। अतः वैयाकरण कहते हैं कि षष्ठी के अनेक अर्थ होते हैं, किंतु संबंध क्रियान्वयी नहीं है। 

इसी प्रकार संबोधन को भी कारक नहीं माना जाता। प्रथमा विभक्ति संबोधन के अर्थ में भी प्रयुक्त होती है। अतः उसे संबोधन प्रथमा कहते हैं। 

इस प्रकार सात विभक्तियां हैं और छः कारक हैं। संबंध और संबोधन कारक नहीं हैं। छः कारक हैं कर्ता, कर्म, करण, संप्रदान, अपादान और अधिकरण। 

एक विभक्ति में कई कारक आ जाते हैं। उदाहरण के लिए -

(क) रामेण रावणः हतः । (रावण राम के द्वारा मारा गया)

(ख) रामः बाणेन रावणं हंति। (राम बाण से रावण को मारता है)

वाक्य (क) में कर्मकारक पद कर्मवाचक पद रावणः' में द्वितीया नहीं है, इसलिए कर्ता के अर्थ में तृतीया प्रयुक्त है। 

वाक्य (ख) में कर्ता के अर्थ में तृतीया नहीं है बल्कि 'बाणेन' तृतीया रूप है। यह तृतीया करण अर्थ में है।

इस प्रकार कारक तत्व को सूचित करने के लिए संज्ञा सर्वनाम विशेषण आदि प्रतिपादकों के तुरंत बाद जो प्रत्यय लगाए जाते हैं, उन्हें विभक्तियाँ कहते हैं। 

विभक्ति के योग से कृष्णेन, वेदस्य, मया, तेन, तस्य आदि रूप में विभक्यंत शब्द या रूप हैं। विभक्ति के प्रत्यय जिन शब्दों के साथ लगते हैं, वे उनके अभिन्न अंग बन जाते हैं। 

इन विभक्ति प्रत्ययों का स्वतंत्र रूप से प्रयोग नहीं होता है, जैसे -

संस्कृत राम, राम, रामेण, रामाय, रामात्, रामस्य आदि।

विभिन्न भाषाओं में कारक की संख्या (कारक किसे कहते है)

हंगेरियन - 29
फिनिश - 15
बास्क - 1000
असमिया - 8
चेचन - 8
संस्कृत - 8
क्रोएशियन - 7
पोलिश - 7
यूक्रेनी - 7
लैटिन - 6
स्लोवाकी - 6
रूसी - 6
बेलारूसी - 7
ग्रीक - 5
रोमानियन - 5
आधुनिक ग्रीक - 4
बुल्गारियन - 4
जर्मन - 4
अंग्रेजी - 3
अरबी - 3
नार्वेजी - 2
प्राकृत - 6

करण और अपादान कारक में अन्तर

जो क्रिया की सिद्धि में अत्यन्त सहायक हो, उसे 'करणकारक' कहते हैं। 

जैसे- मैंने कलम से लिखा। इस उदाहरण में लेखन-क्रिया का साधन 'कलम' है। 

अतः उक्त उदाहरण करणकारक के अन्तर्गत है।

करण का चिह्न ‘से' है। उक्त चिह्न कहीं-कहीं लुप्त रहता हैं। जैसे- आँखों देखा कहने का तात्पर्य है- आँखों से देखा

जिससे कोई वस्तु अलग हो, उसे 'अपादान कारक' कहते हैं। 

दूसरे शब्दों में यों कहा जा सकता है कि संज्ञा के जिस रूप से किसी वस्तु के अलग होने का भाव प्रकट होता है, उसे 'अपादना कारक' कहते हैं। 

जैसे- वृक्ष से पत्ता गिरता है। इस उदाहरण में 'वृक्ष' अपादान कारक 4 है, क्यों कि गिरते समय पत्ता वृक्ष से अलग होता है।

उपर्युक्त उदाहरणों से ज्ञात होता है कि करण और अपादान दोनों का चिह्न 'से' है, लेकिन दोनों में अर्थ की दृष्टि से बहुत अन्तर है। 

करण का चिह्न 'से' साधन का अर्थ प्रकट करता है, जबकि अपादान का चिह्न 'से' अलग होने का।

कर्ता के 'ने' चिह्न का प्रयोग 

कर्त्ता के 'ने' का प्रयोग सकर्मक क्रिया के भूतकाल में होता है। 

उदाहरणार्थ :-

1. सामान्यभूतकाल -  राम ने रोटी खायी। 

 2.आसन्न भूतकाल -  राम ने रोटी खायी  है। 

3. पूर्णभूतकाल - राम नें रोटी खायी थी।

4. संदिग्धभूतकाल - राम ने रोटी खायी होगी।

5. हेतुहेतुमद्भूतकाल - यदि राम ने पुस्तक पढ़ी होती तो उत्तर ठीक होता।

मुस्कुरा देना, हँस देना, रो देना संयुक्त अकर्मक क्रियाओं के उपर्युक्त भूतकालों में कर्ता के 'ने' चिह्न का प्रयोग किया जाता है। 

जैसे- राम ने मुस्कुरा दिया। 

देवदत्त ने हँस दिया। 

मोहन ने रो दिया। 

इसी तरह मैंने पत्र लिख डाला। 

पुलिस ने चोर को मार डाला। 

उसने मुझे जाने दिया। 

राम ने पत्र भेज दिया। 

उसने मुझे खाने दिया।


नहाना, थूकना, छींकना, भूँकना और खाँसना इन अकर्मक क्रियाओं के सामान्यभूतकाल,

आसन्न भूतकाल, पूर्णभूतकाल और सदिग्धभूतकाल में कर्ता के 'ने' चिह्न का प्रयोग किया जाता है। 

जैसे -

1. सामान्यभूतकाल - उसने नहाया। 

2. आसन्नभूतकाल- उसने नहाया है।

3. पूर्णभूतकाल - उसने नहाया था।

4. संदिग्धभूतकाल - उसने नहाया होगा। 

इसी तरह उसने थूका। उसने छींका कुत्ते ने भूँका। मैंने खाँसा ।

बकना, बोलना भूलना आदि यद्यपि सकर्मक क्रियाएं हैं तथापि अपवाद रूप में सामान्य भूतकाल, आसान्नभूतकाल, पूर्णभूतकाल और संदिग्धभूतकाल में कर्ता के 'ने' चिह्न का प्रयोग नहीं किया जाता है। 

जैसे- वह बका, राम बोला, मैं भूला। 

हाँ, 'बोलना' क्रिया में कहीं-कहीं कर्ता के 'ने' चिह्न का प्रयोग किया जाता है। जैसे- मैंने बोलियां बोलीं।

यदि संयुक्त क्रिया का अन्तिम खण्ड अकमक हो तो उसमें कर्ता के 'ने' चिह्न का प्रयोग नहीं किया जाता है। जैसे- वह पुस्तक ले आया। राम खा चुका होगा। उसे रेडियो ले जाना है।

चलते चलते 

तो आज अपने जाना की कारक किसे कहते हैं,, साथ ही कारक के भेदों को भी जाना । अगर आपको कारक से संबंधित कोई अन्य जानकारी चाहिए 

जिसे हम किसी कारणवश इस लेख मे कवर नहीं कर पाए है तो आज हमे नीचे टिपण्णी कर इस बारे मे अपनी सुझाव दे सकते हैं । 

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